डॉ. गोपाल नारायण आवटे
समय अनंत काल से उपलब्ध है। इसे कालगणना में मनुष्य ने बांधा है। समय को बांधने-निबंध होने की कोई चिंता नहीं है। वह तो प्रवाहमान है। अनंत काल से गतिमान।
समय का उपयोग आप करते हैं तो उससे उसे कोई अंतर नहीं पड़ रहा है और अगर उसका दुरूपयोग कर रहे हैं तो भी उसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
समय का दुरूपयोग क्या है? तीन-चार व्यक्ति बैठ कर ताश खेल रहे हैं या फालतू की गपशप कर रहे हैं, यह समय का दुरूपयोग आपकी दृष्टि में हैं, किंतु जो उस समय को उस तरह से व्यर्थ गंवा रहे हैं उनकी दृष्टि से यदि देखें तो वह समय का उपयोग कर रहे हैं।
समय का उपयोग या दुरूपयोग का विचार-दोनों व्यक्तियों का अपना है। जिसका जैसा सोच होगा उसे समय का उपयोग या दुरूपयोग उसी तरह प्रतीत होगा।
समय को इस बात से कतई अंतर नहीं पड़ रहा है कि आप उसका क्या कर रहे हैं। उसका उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए ले रहे हैं कि उसका उपयोग समुदाय के लाभ हेतु कर रहे हैं। वह तो अनंतकाल से बहता चला जा रहा है। अनंतकाल तक बहता रहेगा यदि आप यह विचार करते हैं कि समय को आप रोककर इतिहास बना लेगें तो उस समय को रोकने के लिए आपको कलासाधक बनना होगा।
उस वर्तमान के क्षणों को पत्थर पर उकेरना होगा, उस वर्तमान के पलों को कागज कलम से कथा-कविता के रूप में जीवित करना होगा। समय को वही व्यक्ति जीवित रख सकता है जो वर्तमान का सही उपयोग करना जानता हो, यहां फिर प्रश्न उठ खड़ा होता है कि वर्तमान का सही उपयोग क्या है? यह प्रत्येक मनुष्य के अपने सोच, चिंतन और शिक्षा पर निर्भर करता है।
समय को आपसे कोई दिक्कत नहीं है, वह तो चलायमान है। उसका कालचक्र तो निर्बाध गति से घूम रहा है। आज ऊपर है तो कल उसके चाक के नीचे आकर नष्ट होना भी है। सामाजिक विकास के चलते हमने शिक्षा ग्रहण की और सभ्य समाज के अंग बन गए। यह विकास कई करोड़ों वर्षों का विकास है। इस काल को ना देवता से कोई मतलब था ना अल्लाह से। इस समय के चाक से मनुष्य ने ही अपने संतोष के लिए ईश्वर को गढऩा प्रारंभ किया।
समय तो बस सबका गवाह बनता गया किंतु उसने कभी हस्तक्षेप नहीं किया, करता ही क्यों? क्योंकि उसे आपसे कोई मतलब नहीं , वह तो निर्लिप्तभाव से चलायमान है।
समय को पूजा मान कर उस पर पुष्प चढ़ाये, या उसका प्रतीक चिन्ह बनाये या उसे पंचाग या घडिय़ों में बांध ले वह कहीं रूका या ठहरा है? गणित करके उसकी गति को जान लेना सहज हो सकता है किन्तु उस गति का आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका ज्ञान किसी को नहीं है। वैज्ञानिकों ने समय के बहुत ही छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए या उसे खंडों में बांट दिया किंतु क्या समय कट पाया है? क्या कभी जल को तलवार से काटा जा सकता है? उसी तरह मनुष्य द्वारा समय की कितनी भी गणना कर ली जाए समय को उससे क्या अंतर पड़ रहा है?
समय ईश्वर की तरह विस्तृत और निर्लिप्त है। उसके कालचक्र में आप पाप करें-पुण्य करें, उसे उससे कोई अंतर नहीं पड़ रहा है। आपका जीवन तो प्रारंभ होकर अंत की तरफ चला जा रहा है किंतु समय का प्रारंभ और अंत कहीं नहीं है।
तर्क या समय को लेकर जितनी भी धारणायें बनाई गई है वह सब मनुष्य द्वारा निर्मित हैं। समय ने मनुष्य को इतनी शक्ति प्रदान कर दी है कि वह धारणायें निर्मित करने लगा। समय के प्रत्येक क्षण को संवेदनशील मनुष्य की तरह जीना चाहिए। एक एक क्षण का आनंद लेना चाहिए। आपकी प्रसन्नता, आपकी खुशी उसी में है कि वर्तमान के प्रत्येक क्षण को भरपूर आनंद के साथ जिये, शायद ईश्वर की यही धारणा रही होगी तब ही तो उसने समय का निर्माण किया।
समाज विकास, आत्म विकास हेतु समय के इन क्षणों से ऐसा कुछ चुरा लें कि इससे समाज का विकास हो यही कामना ईश्वर भी मनुष्य से करता है। (विनायक फीचर्स)