watch-tv

चरण-स्पर्श का विज्ञान सम्मत महत्व

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

स्वामी गोपाल आनन्द बाबा

चरण-स्पर्श, दण्डवत प्रणाम, चरण-रज धारण या फिर चरणामृत-पान से जीव व वस्तु में होने वाले परिवर्तन के पीछे एक उच्च स्तरीय शक्ति का प्रभाव का होना है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने अन्वेषण के पश्चात स्मृतियों में उद्घृत किया है। क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व यह अधम शरीरा।। आधुनिक विज्ञान यह निर्विवाद रूप से स्वीकार करता है कि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित है जो सजातीय तत्वों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। मित्रता, स्नेह, ममता व प्रेम इसी आकर्षण की उपज है। यह आकर्षण या खिंचाव एक चुम्बकीय गुण है। प्रत्येक जीवधारी में एक ही समय में तीन वैज्ञानिक सिद्धान्त एक साथ कार्य करते रहते हैं :-

(क) चुम्बकीय शक्ति, (ख) विद्युतीय ऊर्जा और (ग) तात्विक गुण का प्रभाव। यदि विचार पूर्वक ध्यान करें तो हम पाते हैं कि हम प्रतिदिन अनेक लोगों को देखते हैं, मिलते हैं और कुछ के साथ मित्रता का क्रम चल पड़ता है। यह लगाव व खिंचाव उस व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व में समाहित चुम्बकीय गुण के कारण होता है जो सजातीय गुण वाले व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। जिस तरह एक चुम्बक में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव होते हैं, ठीक उसी तरह प्रत्येक शरीर का उत्तरी भाग उत्तरी ध्रुव और कमर के नीचे का भाग दक्षिण ध्रुव माना गया है। शरीर का बायां हाथ और बायां पैर उत्तरी ध्रुव और दाहिना हाथ एवं दायें पैर की अंगुलियां दक्षिण-ध्रुव का अन्तिम छोर माना जाता है, इन्हीं स्थानों से शरीर में व्याप्त चुम्बकीय शक्ति संचित रहती है। चरण-स्पर्श करते समय व्यक्ति अपने दाहिने हाथ की अंगुलियों से श्रद्धास्पद के दाहिने पैर की अंगुलियां विशेष कर दाहिने अंगुष्ठ को जब छूता है तो श्रद्धासागर भी उच्च-चुम्बकीय शक्ति दाहिने हाथ के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर उसे प्रभावित करती है और व्यक्ति श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है। भारतीय धर्म शास्त्रों में चुम्बकीय गुण के साथ-साथ प्रत्येक जीवधारी में निरंतर प्रवाहित विद्युत ऊर्जा का भी उल्लेख किया गया है। नवीन वैज्ञानिक खोजो द्वारा किए गए परीक्षणों से सिद्ध हो गया है कि जीवधारी के शरीर में पाए जाने वाले सोडियम आयन और पोर्टेशियम आयन की उपस्थिति धनात्मक ऋणात्मक आवेगों के कारण स्नायु-तन्त्र के स्नायु-तन्तु की झिल्ली के अन्दर रेस्टिंग पोटैशियम लगभग 80 मिली वोल्ट और एक्शन पोर्टेशियम लगभग 30 मिली वोल्ट तैयार (इलेक्ट्रोकेमिकल) विद्युत रसायनिक प्रक्रिया पर आधारित है।

चरण-स्पर्श में भी व्यक्ति के शरीर में श्रद्धास्पद के चरण से प्रवाहित उच्च प्रभावशाली विद्युत ऊर्जा समस्त नाडिय़ों व ग्रंथियों को जाग्रत कर देती है। हम जब किसी से गले मिलते हैं तो अपनी छाती के दाहिने भाग को सामने वाले की छाती के बाएं से मिलाते हैं। हिन्दू विवाह में कन्या के पैर पखारते समय हाथों की हथेलियों को गुणा चिन्ह (3) में नीचे की ओर रखते हुए वर और वघु के पैर अंगूठे को छूते हैं। यह सब अपने में स्थित चुम्बकीय शक्ति को दूसरे में स्थानान्तरित करने में सहायक होता है। युवा मनुष्यों के प्राण वृद्ध लोगों की उपस्थिति में ऊपर की ओर चढ़ते हैं तथा अभ्युतान तथा प्रणाम करने से वह युवा पुरुष उन्हें पुन: प्राप्त कर लेता है। प्रात: उठकर सर्वदा वृद्धजनों को प्रणाम व उनकी सेवा करने वाले मनुष्य की आयु-विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं। चरण-स्पर्श कदापि एक हाथ से न तो किया जाना चाहिए और न ही हाथ हिलाकर प्रणाम करना चाहिए। इससे जो भी पुण्यार्जन करता है वह सब निष्फल हो जाता है।

इस तरह से चरण-स्पर्श करने से अपने से बड़ों की विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को नई ऊर्जा प्रदान कर ऊर्जावान, निरोगी और सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण कर देती है।

चरण-रज और चरणामृत का वैज्ञानिक तथ्य सभी को विदित है कि जीवधारी का शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- मिट्टी (पृथ्वी), पानी, अग्नि, आकाश, वायु। इन तत्वों की आपसी अभिक्रिया (संयोजन) से बने यौगिकों के गुणों के अनुसार ही व्यक्ति व वस्तु में उनकी उपलब्धता के अनुरूप गुणों का प्रादुर्भाव होता है। वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार किसी भी तत्व का परमाणु तभी तक सक्रिय रहता है, जब तक कि उसके बाह्य कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 या 8 नहीं हो जाती। जब एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण होता है तो परमाणु विपरीत विद्युत आवेशित आयन स्थित विद्युत बलों द्वारा बंध जाते हैं। जब विभिन्न तत्वों के परमाणु और यौगिकों से युक्त धूल के कारण विशिष्ट गुण, युक्त श्रद्धास्पद व्यक्ति की त्वचा या उससे विसर्जित पसीने परमाणुओं और यौगिकों के सम्पर्क में आते हैं, तो आपस में अभिक्रिया कर या स्वयं विघटित होकर वे कुछ मात्रा में आयन के रूप में बदल जाते हैं। परिणाम-स्वरूप यौगिक परिवर्तन हो जाता है।

उक्तानुसार उपलब्ध आयन आपस में आयनों का विनिमय करते हैं। इस तरह श्रद्धास्पद विशिष्ट गुणों के प्रति उत्तरदायी परमाणुॅ और उसके आयन धूल कण के साथ होने के कारण उक्त चरण रज को ग्रहण करने वाला जीव अपने माथे पर लगाता है तो भूमध्य क्षेत्र जाग्रत होकर श्रद्धास्पद के गुणों को ग्रहण कर उसके जैसा बन जाता है। इसी चाहत में श्रीराम के चरण रज प्राप्त करने हेतु भक्तगण आज भी अयोध्या व चित्रकूट में तथा श्रीकृष्ण के चरण-रज प्राप्त करने हेतु वृन्दावन क्षेत्र में विचरण करते हुए दृष्टिगत होते हैं। चरणोदक (चरणामृत) के संबंध में आयनीकरण का सिद्धान्त है। किसी भी विद्युत अपघट्य या आयतन विघटन के सान्द्रण के व्युत्क्रम अनुपात में होता है। अर्थात् विलयन का सान्द्रण घटने से आयन नहीं बढ़ता है। जल का डाई इलेक्ट्रिक स्थिरांक अन्य विलयकों की तुलना में सर्वाधिक अर्थात 80 होता है। इस कारण जल सबसे उत्तर आयनीकारक विलायक होने के कारण जल से चरण धोकर उस जल का पान करने से श्रद्धास्पद के सभी गुण प्राप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में चरणोपादक ग्रहण करने का परिणाम भी व्याख्यायित है- अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्। विष्णु पादोदकंपित्वा पुनर्जन्म न विघते।। अत: वर्तमान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चरण-स्पर्श करना चरण-रज माथे पर लगाना और चरणामृत पान सार्थक एवं सर्वथा उपादेय है।

 

(विनायक फीचर्स)

Leave a Comment