हमारे दुखों की जड़ हैं आप।
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भाई बात कहते हैं साफ।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
मैं आज भी आपके
सपनों को पूरा करता कराता |
आपके लिए ही दिन रात
पसीना बहाता।
तब भी भोजन
भरपेट नहीं पाता।
यह कटु सत्य है,
नहीं मिथ्या प्रलाप |
भाई बात कहते हैं साफ।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
आखिर मेरे खून पसीने से
आपने क्या नहीं पाया ?
हर साल एक कारखाना,
नया भी तो बनाया |
आपको एक और
सत्य बताते हैं।
दुनिया भर के लिए
हम कपड़े बनाते हैं
लेकिन मरने पर
दो गज हम आज
भी नहीं पाते हैं।
मतलब बहुत जहरीला है ,
आपके स्वार्थ का सांप।
भाई बात कहते हैं साफ।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
अगर आज प्रगति पर
है किसी भी देश की पहचान।
तो इसमें सबसे ज्यादा है
मेरा ही योगदान |
आखिर कौन सच्चाई ‘
के गुण गाए।
मेरी वजह से आप
पीएम और सीएम बन पाए |
लेकिन आपके हिस्से में खुशहाली
और मेरे हिस्से में गम आए।
मैं आज भी सहता हूं
उसी का ताप |
भाई बात कहते हैं साफ।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
देखो वह आपकी लालड़ी ,
कीमती कार से निकल गई।
लेकिन मेरी बेटी तो
बिन ब्याहे ही मर गई।
मैं आज भी समस्याओं
से चकनाचूर हूं।
वह किसान और
मैं मजदूर हूं।
हर बार जीतता
आपका प्रताप।
भाई बात कहते हैं साफ।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
आज भी हमारे दुखों की
जड़ हैं आप।
जड़ हैं आप।
*सुनील बाजपेई*
(कवि ,गीतकार ,लेखक एवं
वरिष्ठ पत्रकार),
कानपुर।