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लुधियाना में हुए पंजाबी साहित्य अकादमी के दो दिवसीय पंजाबी भाषा सम्मेलन में की गंभीर चर्चा

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मशीन इंटेलिजेंस के सकारात्मक पहलू ही अपनाने की जरूरत : पदमश्री डॉ. पातर

लुधियाना 30 अप्रैल। पंजाबी साहित्य अकादमी द्वारा ‘बदलता दृष्टिकोण, समसामयिक एवं पंजाबी भाषा’ विषय पर दो दिवसीय पंजाबी भाषा सम्मेलन पंजाबी भवन में कराया गया। इस दौरान साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों ने गंभीर चर्चा की।

राजनेताओं की खिंचाई : इस सम्मेलन से पहले साहित्य अकादमी  के प्रधान डॉ.सरबजीत सिंह ने उद्घाटन सत्र की शुरुआत करते हुए मेहमानों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पार्टियों के चुनाव प्रचार से भाषा, साहित्य, शिक्षा जैसे मुद्दे गायब हैं। एक रंग भारत के बारे में बात करते समय असहमति की आवाज को दबाया जा रहा है। उन सम्मेलनों के ढांचे में विस्तृत जानकारी देते हुए आपका आगमन भाषा की चिंता का प्रमाण देता है। पहले सत्र की प्रधानगी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एसएस जौहल एवं मुख्य अतिथि डॉ. सुरजीत पातर ने की। इनके साथ अकादमी के महासचिव डॉ. गुलज़ार सिंह पंधेर और डॉ. जोगा सिंह मंचासीन रहे। प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. जोगा सिंह ने भाषाई विकास पर सम्मेलन का मुख्य भाषण दिया। उन्होंने शिक्षा, राजनीति और संचार के माध्यम से एक भाषा के दूसरी भाषा पर प्रभुत्व की स्थितियों का उल्लेख किया।साथ ही उदाहरण देकर पंजाबी भाषा के अतीत और वर्तमान पर चर्चा की। वह बोले कि वैश्वीकरण के युग में काल के सामने आने पर सामने सच्चाई आ गई है। उन्होंने कहा कि पंजाबी कामयाबी हासिल करने के लिए शिक्षा और रोजगार का बेहतर माध्यम है। इसे कानून, ज्ञान और पत्राचार की भाषा बनाने की जरुरत है। डॉ.जौहल ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि भाषा की आवश्यकता ही उसे पनपाती है। उन्होंने पंजाब की राजनीति और बंटवारे की ओर इशारा करते हुए भाषा हानि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि बोली के स्तर पर पंजाबी डायस्पोरा में भाषा का अच्छा भविष्य है। जिससे उम्मीदें की जा सकती है। मुख्य अतिथि डॉ. सुरजीत पातर ने कहा कि यह बेहद शर्म की बात है कि सिर्फ पंजाब के स्कूलों मेंबच्चों को पंजाबी बोलने से रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों के अभिभावकों का रुझान अंग्रेजी के प्रति है। साथ ही अज्ञान एवं भ्रम की चेतना को बदलने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मशीन इंटेलिजेंस के सकारात्मक पहलू अपनाने की जरूरत है। साथ ही उन भाषाओं, भाषा-विज्ञान को बढ़ावा देने वाले तेरह कारकों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ.पातर ने सरोकारों और ईमानदारी से रिश्ता बनाने की जरूरत पर बल दिया। सत्र का संचालन डॉ. गुलजार सिंह पंधेर ने किया और रिपोर्ट प्रो. बलविंदर सिंह चहल ने पेश की। दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. स्वराजबीर ने की। जबकि डॉ.सुखदेव सिंह सिरसा ने ‘समकालीन और भारतीय’ विषय के तहत भाषाओं की स्थिति पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि जनजातीय एवं जनजातीय भाषाओं के प्रति सरकार का रवैया क्या है। आज़ादी के बाद से अवैज्ञानिक, जातीय और प्रशासनिक दृष्टिकोण के कारण सैकड़ों भाषाएं ख़त्म हो चुकी हैं।भाषाओं के विकास के लिए लोगों की चेतना और शिक्षा महत्वपूर्ण और बुनियादी कारक हैं। डॉ.सुरजीत सिंह ने ‘यूजर कल्चर एंड पंजाबी लैंग्वेज’ विषय पर अपने रिसर्च पेपर में कहा कि यूजर्स संस्कृति को एक नकारात्मक घटना के बजाय एक आवश्यक ऐतिहासिक स्थिति के रूप में समझा जाना चाहिए। इस समय केवल माल सामाजिक स्थिति एवं स्तर का निर्धारण करता है। ऐसे में क्षेत्रीय भाषाएं या भाषाई विविधता रहना बहुत ज़रूरी है। डॉ.अरविंदर कौर काकरा ने टिप्पणी के लिए धन्यवाद दिया। मंच का संचालन शब्दीश एवं अन्य ने किया तथा रिपोर्ट वाहिद द्वारा प्रस्तुत की गई।

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