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उड़दी-उड़दी : हम तो सिर्फ धारा संग बह रहे, विचारधारा गई….

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उड़दी-उड़दी

हम तो सिर्फ धारा संग बह रहे, विचारधारा गई….

लोकसभा चुनाव में जोर-जोर से एक ही मौसमी गीत बज रहा है-मैं इधर चला, मैं उधर चला। ऐसे में अपने खबरची ने बड़ी मासूम सी हरकत कर डाली। उसने सरपट भाग रहे एक चुनावी सीजन में दिखने वाले खादीधारी प्राणी को रोक लिया। देशसेवा को उतावला वह प्राणी बुरी तरह झुंझलाकर बोला-जल्दी बता क्या काम है ?

खबरची थोड़ा सहमकर बोला-श्रीमान जी, आपको पहचान लिया, आप वही हैं जो परसो फलां पार्टी में थे और कल फलानी पार्टी में और आज किधर चले। क्या अब तीसरे दल में बदल होने की तैयारी है। आखिर आपकी विचारधारा क्या है, कौन सी विचारधारा से प्रभावित होने वाले हो और क्यों, कुछ तो बताओ आखिर माजरा क्या है। आपको दल बदलते बिल्कुल शर्म आइमीन लिहाज नहीं आती है क्या ?

इतना सुनते ही वह खददरधारी जीव ठाहके मारते हुए पेट पकड़कर बोला, अरे पगले, हम तो सिर्फ धारा के साथ बह रहे हैं बस, विचारधारा तो कब की चली गई….। यह सुनकर खबरची पहले सिर पकड़कर बैठ गया, जब सिर उठाकर देखा तो वह खद्दरधारी प्राणी उड़नछू हो चुका था। अभी संभला भी नहीं था कि जोर-जोर से चिल्लाते भोंपू वाले वाहन से आवाज आई, सबके हरदिल अजीज अपने रंग बदलने में माहिर गिरगिट महाराज दिल बदलते ही नए डेरे में स्थापित हो चुके हैं।—-(नदीम अंसारी)

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