ऋचा अग्रवाल
आप किस मजाक पर सिर्फ हंसते हैं व किस मजाक पर दिल खोलकर हंसते हैं, इससे आपके व्यक्तित्व का पता चलता है। इस आधार पर कैलीफोर्निया के कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि परीक्षण की तरह ही मजाक से व्यक्तित्व परीक्षण का तरीका विकसित किया है। जिन बातों से लोग हंस पड़ते हैं वे मजाक की श्रेणी में आती हैं। अर्थात एक ऐसी स्थिति जिसकी आप उम्मीद नहीं करते थे, लेकिन जिससे आनंद आया। कभी-कभी ऐसी स्थितियां अपने आप आ जाती हैं, लेकिन आमतौर से मजाक कल्पना प्रसूत होते हैं। कल्पना से ऐसी बातें गढ़ी जाती हैं, जो थोड़ा संभव हो लेकिन उनमें कुछ ऐसा हो जो हंसने के विवश कर दे।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मजाक से व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व की मौलिक प्रवृत्ति जानी जा सकती है। यदि हम यह जान जाएं कि कौन व्यक्ति किस बात पर हंसेगा और क्यों तो हम उसके व्यक्तित्व के अंतर को जान सकते हैं।
मनोविद हेनरी मिडस का कहना कि हम यह बताना चाहते हैं कि आपमें अच्छी मजाक की भावना है, या नहीं और उसका आपके व्यक्तिव से क्या संबंध है।
किसी भी मजाक के लिए यह आवश्यक है कि उसमें कोई विसंगति हो। इसी विसंगति पर व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही उनकी मानसिक सनम्यता या अनम्यता का बोध कराती है। चूंकि परिहास की यह विसंगति दृष्टिकोण में बदलाव के रूप में रहती है, इसलिए जो लोग इसे हंसने योग्य समझते हैं, वे अपने विचारों या विश्वासों में लचीले होते हैं। यदि किसी मजाक को आप बढिय़ा और दूसरा बेहूदा या व्यर्थ समझते है तो उससे आपकी स्वभावगत विशेषता पता चलती है।
मिडेस ने हास परीक्षण की जो विधि अपनाई है, उसमें 40 मजाक हैं, जिसमें 11 कार्टून हैं। ये मजाक दस किस्मों जैसे बेहूदे, दार्शनिक, सामाजिक, व्यंग्य, यौन संबंधी अश्लील, विद्रोही और स्त्रियों-पुरुषों को अपमानित करने वाले हैं। जिन लोगों का परीक्षण किया जाता है, उनसे कहा जाता है कि वे हर मजाक को एक से पांच तक अंक दें। एक अंक का मतलब हुआ, इसमें एकदम मजा नहीं आया और पांच का मतलब हुआ ‘इसमें बहुत मजा आया।’ इस हास परीक्षण के साथ ही छठे दशक में विकसित व्यक्तित्व परीक्षण भी किए गए।
इन दोनों परीक्षणों से प्राप्त नतीजों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि किस तरह का व्यक्ति कैसा मजाक पसंद करता है। जिन लोगों ने दार्शनिक किस्म के मजाकों को अच्छे अंक दिए, उन्हें मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे लोग अपने विश्वास में सुदृढ़ रहते है और चूंकि इसलिए उनमें मजाक के प्रति सर्वाधिक स्वस्थ भाव रहता है। जिन मजाकों में स्त्रियों, पुरुषों को हीन दिखाया गया था, उन्हें पसंद करने वाले अपने विचारों में सनम्य नहीं होते। ऐसे लोग समझते हैं कि महिलाएं मूर्ख ही होती हैं। यदि आप किसी ऐसे कार्टून को देखकर हंसते हैं, जिसमें कार का पंक्चर पहिया हटाने के लिए कोई महिला गलत जगह जैक लगा रही है तो निश्चय ही आप इस किस्म के व्यक्ति हैं, क्योंकि आपके विचार से औरतें मूर्ख ही होती हैं।
मजाक की उत्पत्ति के पीछे भी मनोवैज्ञानिक कारण है। तनावों से जकड़े व्यक्ति ने तनावमुक्त होने के लिए इसकी रचना की। हल्की-फुल्की चर्चा पर जी खोलकर हंस लेने से निश्चत ही तनाव शैथिल्य हो जाता है। इसी से राजघरानों में विदूषकों का स्थान बना। उन्होंने राज-काज में थके नरेशों का मन बहलाकर उन्हें तनावमुक्त कराने का गुर सीखा।
कोई व्यक्ति किस विधि से तनाव मुक्त होता है, यह उसकी शारीरिक ऊर्जा का भी संकेत होता है। जिन लोगों में अत्यधिक ऊर्जा होती है, वे स्नायुपेशीय क्रियाएं करके तनाव मुक्त होते हैं। खिलाड़ी खेलने के बाद थकता कम है, तनाव मुक्त अधिक होता है। जबकि कम ऊर्जा वाले लोग भावनात्मक और काल्पनिक रूप से तनाव मुक्त होने का प्रयास करते हैं। हास-परिहास के प्रति आपका रुख या प्रतिक्रिया आपकी मानसिक स्थिति का भी बोध कराती है। यदि किसी ऐसे मजाक पर जिसमें उपस्थित सभी लोग दिल खोलकर हंसते हों, लेकिन आप गुमसुम रहते हैं तो आपको किसी मनोविश्लेषक की शरण लेनी चाहिए, क्योंकि इससे संकेत मिलता है कि आप सामान्य नहीं हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इसी आधार पर बच्चों के भविष्य की मानसिक स्थिति का भी संकेत देने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि यदि किसी उत्प्रेरण पर जैसे (गुदगुदाने या कुरेदने पर) बालक यदि शारीरिक प्रतिक्रिया करता है तो वह सामान्य है, लेकिन वह यदि शारीरिक क्रिया न कर आंतरिक क्रिया जैसे रक्त प्रवाह तेज होना आदि करता है तो वह असामान्य है। और ऐसा बालक आगे चलकर मानसिक रोगी हो सकता है क्योंकि उसने हर उत्प्रेरण पर आंतरिक प्रतिक्रिया व्यक्त करना सीख लिया है।
(विभूति फीचर्स)