मनोज कुमार श्रीवास्तव – लेखक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी
– विनायक फीचर्स
हनुमान को सबसे पहले ‘बल’ के गुण के साथ याद किया गया जबकि राम को शांति के गुण के साथ याद किया गया। यह किसी किस्म का कंट्रास्ट नहीं है, सेवक का ‘बल’ सेव्य की शांति का कारण है। बल एक ऐसा तथ्य नहीं है जिसकी उपेक्षा की जाए। भले ही वह निराभौतिक भी क्यों न हो। वह अपने किस्म का यथार्थवाद है। विवेकानंद कहते थे- ‘केवल एक पाप है। वह है दुर्बलता।’ राम के साथ बल की बात करना, ईश्वर के साथ ‘बल’ की बात करना उसे कुछ ज्यादा ही पार्थिव बनाना है। वह तुलसी को नहीं रुचता, लेकिन तुलसी अव्यावहारिक नहीं हैं। इसलिए राम के संबंध में जिस गुण को वह उल्लिखित नहीं करते, हनुमान के संबंध में उसका प्रथमोल्लेख करते हैं। राम के संबंध में जिस ‘बाल’ का बहिरंगीकरण हनुमान के रूप में दिखाया है, ईश्वर के साथ उसी बल बहिरंगीकरण, भारतीय, परम्परा में, शक्ति के रूप में हुआ, इसलिए तुलसी परंपरा से कोई बहुत फर्क नहीं कर रहे। राम को महाबली कहना कैसा लगेगा? ईश्वर को महाबली कहना कैसा लगेगा? हमारी परंपरा उसे ‘आलमाइटी’ भी नहीं कहती। लेकिन हनुमान को महाबली कहा गया। जोसेफ आल्टर का उत्तर भारत की पहलवानी पर एक अध्ययन द रेसलर्स बॉडी के नाम से है। उसमें एक अध्याय पहलवानों के संरक्षक देवता हनुमान पर है। यह हनुमान की शुद्ध दैहिक प्रेरणा का निरूपण है। अगस्त्य मुनि से श्रीराम ने विनयपूर्वक कहा था ‘अतुल बलमेतद् के वालिनो रावणस्य च/न त्वेताभ्यां हनुमता समं त्विति मतिर्मम’ महर्षि नि:संदेह बाली और रावण के बल की कहीं तुलना नहीं थी, परंतु मैं समझता हूं कि इन दोनों का बल भी हनुमान की बराबरी नहीं कर सकता था।
उससे कहीं आगे चलकर हनुमान अपने आराध्य की ‘वाइटल इनर्जी’ हैं। वे भक्ति और शक्ति के बीच के सेतु हैं। भक्त भगवान की ऊर्जा है। वे जिस ‘बल’ को रूपायित करते हैं, वह बल सिर्फ पोटेंसी नहीं है, वह एक ड्राइव भी है। उनका बल इस बात में नहीं है कि वे उसके धारक हैं, इस बात में है कि वे उसके प्रयोक्ता हैं। उनकी विशेषता बली होने में नहीं है, बल के सही उपयोग में है। बली होना ‘बुली’ होना-दादा होना नहीं है। आपके बल की परीक्षा आपकी बैकबोन से होती है- मेरुदंड से, आपकी दादागिरी से नहीं होती। हनुमान के साथ जितनी उनकी शक्ति याद आती है, उतनी उनकी विनम्रता भी।
हनुमान का बल अतुलित है। यानी न तो वो गोलिअथ जैसा है न सैम्सन जैसा। न नृतत्वशास्त्रियों द्वारा वर्णित मैगनथ्रोपस या जावा मैन जैसा है न यति जैसा। न वो स्मिथसोनियन जाइंट जैसा है, न वह 1936 में चाड में फ्रेंच पुरातत्वविदों द्वारा ढूंढ़े गए महाकार ‘साओस’ जाति के लोगों जैसा। न वह 1930 में बाथहस्र्ट में मिले उस जीवाश्म आदमी जैसा है जो 25 फीट लंबा और विशालकाय मनुष्य था, न वह न्यू साउथवेल्स के ब्लू माउंटेन में मिले पद चिन्हों से प्रमाणित 30 फीट लंबे आदमी जैसा। न वह भीम जैसा है कि जो अगले युग में हनुमानजी की पूंछ तक नहीं हटा सके। मार्को पोलो द्वारा जंजीबार में पाए गए महाकार लोगों की प्रजाति या कार्नवाल, जो ‘लैंड ऑफ द जाईंट्स’ कहलाता है, के लोगों की प्रजाति भी उससे तुलनीय नहीं। कोउक्स वेटिकेन्स में चार देवताओं के द्वारा बनाए महाकार मनुष्यों क्विनामेट्जिन हुएट्लैकेम से भी उनकी तुलना नहीं, न संत क्रिस्टोफर से जिन्हें 12 से 18 फीट लंबा और लगभग आतंकित कर देने वाले देहाकार के साथ अत्यंत दयालु और संवेदनशील स्वभाव का बताया जाता है। इतिहास में भी ऐसे कई उदाहरण हैं- हालांकि हनुमान उनमें से किसी से भी तुलनीय नहीं। मसलन, टर्की में 1950 में फरात नदी घाटी में कई ऐसी कब्रों का पता चला था जो 14-16 फीट लंबे आदमियों की थीं। फ्लिंटशायर में 1833 में सडक़ बनाते समय ‘जाईंट ऑफ द गोल्डन वेस्ट’ कहलाने वाले वेल्श योद्धा बेनली की खोपड़ी मिली थी, हालांकि अभी यह पूर्णत: स्थापित नहीं है कि यह विशाल खोपड़ी बेनिली की है।
स्पेन में वेलेंशिया में रॉय नोर्विल ने एक 22 फीट लंबे आदमी की कब्र ढूंढ़ निकाली। कांगो के पूर्व रूआंडा-जरुंडी में बातुसी जनजाति तो दुनिया के सबसे लंबे लोगों की प्रजाति कही जाती है। फिलीपींस में गर्गायन नामक जगह पर 17 फीट लंबा अस्थि जाल मिला। सर फ्रांतिसस ड्रेक हों या मैगेलन या सर थॉमस कैवेन्डिश-सभी के यात्रा वृत्तांतों में महाबली, अतिशयाकार लोगों की जातियों के उल्लेख आए हैं। लाओस के पुराणों में ‘यक्ष’ नामधारी महाकारों के उल्लेख हैं। नोर्स पौराणिकी में ह्वौटुंग, ह्विमथर्स, हौड, ह्यूम, ह्रिमयर, हरुग्निर, हायरोकिन जैसे महाकारों के नामों की ध्वनि भी हनुमान का नाम श्रवण कराती है। इतिहास, पुराण और साहित्य ऐसे महाशक्तिशाली लोगों का स्मरण कराते रहे हैं। हनुमान अति शक्तिशाली हैं- ‘सुनतहिं भयउ पर्वताकारा’ हनुमान सुंदरकांड से पहले ही हो गए थे और सीता के परम संदेह पर भी वे सुनि कपि कीन्ह प्रकट निज देहा के साथ कनक भूधराकार सरीरा’ के रूप में सामने आते हैं। लेकिन हैं वे अतुलित। इसलिए आज के जितने भी महाकाय दीर्घकाय लोग हैं, उन्हें अधिक से अधिक भीमकाय या भीमाकार कहा जाता है। उन्हें हनुमानकाय या हनुमानाकार नहीं कहा जाता, उन्हें ‘इनमें बेहतर’ या ‘इक्वली गुड’ या ‘लगभग बराबर’ जैसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। उनकी मात्र मनुष्यों से कोई तुलना करके तुलसी किसी तुलनावाद को प्रोत्साहन नहीं देते। वे शुरू में ही अतुलित बोलकर उन मूढ़ स्टैण्डर्स को खारिज कर देते हैं जिनके द्वारा आदमियों या संस्कृतियों के ‘ईगो’ से खेला जाता है। ऐसा कर वे हनुमान को क्षणभंगुरता से बाहर करते हैं। मत्र्य मनुष्यों की जगह उनके लिए तो अधिकतम यही कहा गया- पवन तनय बल पवन समाना। अतुलित कहना हनुमान को किसी तरह से अधिकतमीकरण से भी परे दिखाना है और किसी तरह से इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन) से भी।
हनुमान के बल वर्णन को हम अपनी भाषा की दुनियावी फांसों में नहीं उलझा सकते। किसी तरह के कंपेरेटिव या सुपरलेटिव उनके प्रसंग में व्यर्थ हैं। हनुमान सात सनातनों में हैं जबकि दुनिया के जिन महाशक्तिशालियों का हमने उल्लेख किया, वे समय के किसी बिंदु पर कीलित हैं। इसलिए हनुमान को हम विकल्प की तरह नहीं भजते- किसी च्वाइस या आल्टरनेटिव की तरह नहीं। हम हनुमान को हनुमान की तरह भजते हैं। भीम में हजार हाथियों का बल होगा, हनुमान हमें वह सांख्यिकीय संतोष भी नहीं देंगे। राम की तरह शिव को भज लो, शिव की तरह राम को भज लो- एक ही बात है। पर हनुमान की तरह तो सिर्फ हनुमान को ही भजा जा सकता है। उन्हें हम इसलिए नहीं भजते कि वे और विकल्पों से ज्यादा खराब नहीं है। उन्हें हम इसलिए भी नहीं भजते कि वे और उपलब्ध बली विकल्पों से बेहतर हैं। हनुमान हमें यह बताते हैं कि हम सबके भीतर शक्ति जागृत हो जाने पर वही व्यक्ति जो बाली से सुग्रीव की रक्षा नहीं कर पा रहा था, स्वयं भगवान राम के लिए संकटमोचन सिद्ध हो जाता है। हनुमान को मनचाहा रूप धरने की जो शक्ति प्राप्त हुई थी, जो उन्हें एक तरह की मार्फोलांजिकल फ्रीडम (उपधारण स्वातंत्र्य) मिली थी वह इन दिनों के कॉमिक सुपर हीरो की प्रेरणा का भी कारण बनी है। ऐसे कई शेपशिफ्टर सुपरहीरो हैं- जैसे मिस्टर फैंटास्टि, प्लास्टिक मैन, इलांगेटेड मैन, बीस्ट ब्वाय, केविन सिडनी, मिस्टिक, एडम, कॉलोसल ब्वाय, जागौटा हैक पिम आदि। फैंटास्टिक फोर का नेता रिचर्ड्स अपने शरीर को किसी भी रूप में स्ट्रेच कर सकता है।
जब रीड अपने साथियों के साथ चोरी से अंतरिक्ष जाने वाले एक यान में बिना कवच के प्रदेश कर जाता है और उनका यान वान एलन पट्टी से गुजरता है और वे जागतिक विकिरण का शिकार बन जाते हैं तो यान को वापस धरती पर लौटने पर विवश होना पड़ता है। रीड पाता है कि उसका पूरा शरीर लचीला हो गया है और अपनी इच्छा से वह अपने शरीर को किसी भी आकार-प्रकार का बना सकता है। प्लास्टिक मैन को एक मुनि के प्रभाव से किसी अपरिचित एसिड के शरीर में फैल जाने से शरीर को रबर की तरह खींचने, बाउंस करने और ढालने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। हनुमान की भी परिवत्र्य दैहिकी सुंदरकांड में अपने चरम पर है।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा,
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥
मसक समान रूप कपि धरी…
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना, पैठा नगर सुमिरि भगवान।
बिप्र रूप धरि वचन तहवां…। *