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बदलते दौर में नवयुवकों की जीवन शैली

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उषा जैन ‘शीरी’- विनायक फीचर्स

नौजवानी जीवन का ‘गोल्डन पीरिएड’ यूं ही नहीं कहलाता खासकर जब जेब भरी हो और जोश एवं उर्जा अपने चरम पर हो। आपने अक्सर किसी नौजवान को अपनी शानदार मोटरबाइक पर गर्लफ्रैंड़ की बांहे कमर में लपेटे हवा में उड़ते हुए देखा होगा। हवा में लहराती पोनी टेल या खुले बाल कलर किए हुए कई-कई जेबों वाले ट्राउजर और अजीबो गरीब बातें लिखीं टी शर्ट, एक कान में बाली या मुर्की, गले में चेन, एक हाथ में ब्रेसलेट। आंखों पर ब्रान्डेड गॉगल्स, लेैदर बैल्ट खास डिजाइनों में। ब्रांडेड शूज….शानदार परफ्यूम, आफ्टर शेव की मिली जुली खुशबू से महकते आखिर ये नवयुवक क्यों न इतरायें? जमाना इनके कदमों में है। जीवन की उमंगों से भरपूर भविष्य के सुनहरे सपने सजाए ये नवयुवक अक्सर किसी फास्ट फूड जाइंट, बीयर बार या किसी महंगे सस्ते रेस्त्रां में गर्ल फ्रैंड्स के साथ गपशप लड़ाते दिख जाएंगें या कहीं अपना वाहन रोके खड़े मोबाइल पर बातें करते नजर आएंगे। आज बड़े शहरों में ही नहीं छोटे शहरों, कस्बों में भी जगह-जगह कैफे जो धड़ल्ले से चल रहे हैं वे इसी पीढ़ी की बदौलत है। इंटरनेट चैटिंग सर्फिंग उनका मौजूदा सबसे प्रिय पासटाइम साबित हो रहा है। घर पर ही मोबाइल,कम्प्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन हो तो बात ही क्या। हर चीज की तरह इसके भी फायदे नुकसान नजर आते हैं। जहां कुछ नवयुवक अपना कैरियर बनाने पैसा कमाने के लिए इसमें व्यस्त हैं तो कहीं पोर्नोग्राफी और न्यूड तस्वीरें देखकर मन बहलाने का जुनून है।

एमएमएस कांडों का तेजी से बढना अश्लील एसएमएस भेजकर लडकियों को तंग करना कई नवयुवकों के राह भटकने का संकेत है। कम्प्यूटर, मोबाइल जैसी चीजों का अविष्कार उन्नति के लिए हुआ है यह मानकर चलना चाहिए। इनका दुरूपयोग बर्बादी की राह पर ही ले जायेगा। ये बातें नवयुवकों को स्कूल कॉलेज के जीवन में बताई जानी चाहिए। सैक्स को लेकर जो खुलापन आज समाज में आ गया है इसके बुरे नतीजे भी सामने है। यौन शिक्षा आज उनके लिए स्कूल टाइम से ही जरूरी है। जागरूकता ही उन्हें उनके बुरे परिणामों से रोक सकती है। एड्स को लेकर जागरूकता फैलाने की काफी कोशिशें की जा रही हैं फिर भी अभी नौजवानों में इसकी और जरूरत है।

केवल बाहरी टिप टॉप, फैशन के तौर तरीके पर ही ज्यादातर ध्यान देना एक आसान तरीका है। नख से शिख तक फैशन की बारीकी से पड़ताल कर अपनाना कोई इन नवयुवकों को देखे तो जाने। महज सबसे हटकर दिखाने की लालसा कई बार उन्हें फैशनेबल कम भांड ज्यादा बना देती है। मगर उन्हें परवाह कहांं।

फैशन परस्त युवा वर्ग अरसे से फिल्मों को देखकर फैशन का ट्रेंड फालो करता आ रहा है। आज टीवी और वेबसीरिज भी इसी दिशा में कार्य करता जान पड़ता है। टीवी के कलाकार जो नई शैली की ड्रेसेज, जो कांबीनेशन पहनते हैं युवकों को वहीं लुभावने लगते हैं।

हमारे यहां के युवक युवती फैशन के प्रति पूरी तरह सजग हैं। सुंदर और आधुनिक दिखने की होड़ में वे किसी से पीछे नहीं रहना चाहते। यही चाहत कई बार मध्य एवं निम्न मध्यमवर्गीय युवकों को अपराध की ओर उन्मुख कर देती है। ऐशपरस्ती के लिये ढेर सा रूपया चाहिए जो उनके पास नहीं होता है। सलमान जैसी बी एम डब्ल्यू या फर्राटे भरती किसी अन्य नामी हीरो जैसी ओपल, होंडा सिटी, फॉक्स बेगन जैसी महंगी गाडिय़ां हों और बगल में ऐश्वर्याराय जैसी खूबसूरत गर्ल फ्रेंड, यह आज के नवयुवकों का कॉमन ड्रीम है।

बॉडी बिल्डिंग भी आज हर नवयुवक के लिए मस्ट है। मसल्स न बनें, बांहों में मछलियां न तने तो प्रदर्शन कैसे हो। प्रदर्शन आज के युग का नारा है। ब्यूटी पार्लर की तरह ही आज जिमखाने जगह-जगह खुल गए हैं। नवयुवकों में वहां जाकर बॉडी बिल्ड करने की धुन सवार है। वे ब्यूटी पार्लर जाते हैं, जिम जाते हैं और नाइट क्लबों में रैप जाज और पॉप म्यूजिक सुनते हुए कभी सैक्सी फिल्मी गानों की धुन पर झूमते थिरकते या डांस करते हैं।

ये सभी शौक मंहगे होते हैं। इसीलिए जैसा कि पहले कहा गया है कभी-कभी, कोई-कोई नवयुवक पैसे कमाने की धुन में गलत राह पर चल पड़ता है। वह भाई लोगों के चंगुल में फंस सकता है जो इसी तरह के जरूरतमंद नवयुवकों को तलाश में रहते हैं या मेल प्रॉस्टीटयूशन में लिप्त हो गिगोलो बन जाता है। आज की अत्याधुनिक सोसायटी में जिस तबके के पास फेंकने को पैसा है, वे मजे के नये-नये तरीके ढूंढते हैं।

एकरसता निस्संदेह ऊबाऊ बन जाती है इसीलिए विविधता की खोज की जाती है। देखना यह है कि विविधता के नाम पर कहीं ऐसा कुछ तो नहीं जो अनैतिक हो, सौंदर्य बोध को नष्ट करता हो यह सिर्फ वक्त की बर्बादी करता हो। यह सोचना होगा उसी पीढ़ी को जिनकी जिन्दगी का यह तौर तरीका बन गया है। जिन्दगी एक बार ही मिलती है इसमें न पुनरावृत्ति की जगह है न वंसमोर की। वक्त की मांग- कहकर अंधानुकरण नहीं किया जाना चाहिए। ऊर्जा सीमित समय के लिए मिलती है। इसका सदुपयोग करते हुए रचनात्मकता, सृजनात्मकता को तरजीह दी जाए, मनोरंजन हो मगर स्वस्थ। फैशन के नाम पर ऊटपटांग कपड़े, पैसों की बेतहाशा बर्बादी को रोकना होगा। आत्म नियंत्रण, संयम और विवेक ऐसे गुण हैं जिन्हें फिर से अहमियत देते हुए अपनाना होगा। कवि क्रेम रेन के शब्दों में टूट फूट का असली जिम्मेदार यही वर्ग है। बहाव के साथ बहने के बाद अब वक्त है थमकर कुछ सोचने का।

 

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