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जब वोटर की बारी आती है तो…

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संदीप शर्मा

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में निष्पक्ष और निर्भीक मतदान लोकतंत्र की मजबूती के लिए सबसे जरूरी हैं। ऐसे मेें जब कभी भी बूथ कैचरिंग और चुनावी हिंसा की कुछ घटनाएं सामने आती थी तो मतदाता अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करता था साथ ही निर्भीक और निष्पक्ष चुनाव पर भी सवालिया निशान लगते थे। हमारे देश में मतदान प्रणाली ने निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए निर्वाचन आयोग भरसक व्यवस्था करता रहता है। इस संदर्भ में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी.एन.सेशन के चुनाव सुधारों की पहल को आज भी याद किया जाता है। मतपत्र पर मुहर लगाने का दौर भी हमने देखा है और आज ईवीएम का बटन भी हम ही दबाते हैं। लेकिन ईवीएम पर बटन दबाते समय एक जागरूक मतदाता को यह जरूर सोचना चाहिए कि जाति, धर्म, जान-पहचान और अन्य प्रलोभन को दरकिनार कर हम अपना मत उस उम्मीदवार को दे भी रहे हैं कि नहीं जो वास्तव में हमारे मत का अधिकारी है। तमाम राजनीतिक पार्टियां चुनावों में अपने प्रत्याशी के चयन के लिए जिताऊ उम्मीदवार को टिकट देने में जाति,धर्म और दूसरे अन्य कई ऐसे कारणों को भी ध्यान में रखती हैं जिनका कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में उम्मीदवारी के लिए अनिवार्य अर्हताओं को कोई लेना देना नहीं होता है। फिर भी वोटर राजनीतिक दलों द्वारा स्वंय की सहूलियत के बनाए गए जाल में फंसता सा जाता है।

हमारे देश में साक्षरता की दर बढ़ रही है और वोटर का मिजाज भी बदल रहा है। ऐसा कहना तो बेमानी होगा कि आज सभी वोटर जात-पात,धर्म या सम्प्रदाय के नाम पर बहकावे में नहीं आते हैं लेकिन इतना जरूर है कि अब वोटर इतना सवाल जरूर करता है कि उन्हें जाति-पाति से पहले क्षेत्र का विकास, शिक्षा,स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे पर बात करनी है। अपना और अपने बच्चों की बेहतरी के लिए सवाल करने हैं। जब से ईवीएम में नोटा का विकल्प आया है तब से वोटर अपनी नाराज़गी का इजहार करने में भी कोई संकोच नहीं बरतता है।

जिस तरह से हम किसी के साथ रिश्ता जोड़ते समय उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के तमाम गुण और दोषों का मूल्यांकन करते हैं। ठीक उसी तरह हमें अपना जनप्रतिनिधि का चयन भी करना होता है। जनप्रतिनिधि के चयन को लेकर उसी तरह चौकन्ना रहने की जरूरत होती है जैसे हम नज़र हटी दुर्घटना घटी की तरह सर्तक रहते हैं। आखिर मत का अधिकार ही तो जनता को जनार्दन का दर्जा दिलाता है। और जब वोटर की बारी आती है तो उसकी बुद्धि,विवेक और कौशल की परीक्षा भी होती है।

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