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चुनावी जनसभाओं में दाढी, साड़ी और झपकी की बातें

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संदीप शर्मा

लोकसभा चुनावों को लेकर जनसभाओं का दौर अपने चरम पर है। पीएम मोदी जहां-जहां भी चुनावी रैलियों में जाते हैं वो वहां का पहनावा और बोली भाषा को आत्मसात कर जनता से निकटता स्थापित करने की कोशिश करते हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के चेहरे पर दाढी एक अनुभवी राजनेता की छवि बनाने की कोशिश है। पीएम मोदी का पहनावा भारतीय जनता पार्टी की चुनावी जनसभाओं में एक विशेष आकर्षण का केन्द्र रहता है। किसी दौर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पहनावा चुनावी जनसभाओं में श्रोताओं के बीच खासी चर्चा का विषय हुआ करता था। इंदिरा गांधी साड़ियों के चयन को लेकर बेहद संजीदा रहा करती थी। ये ही वजह है कि चुनावी जनसभाओं में इंदिरा गांधी की साड़ी को लेकर महिलाओं में अच्छा खासा उत्साह देखा जाता था। सिर पर पल्लू रखकर और गले में रुद्राक्ष धारण कर इंदिरा जी जब जनता जनार्दन से कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील करती थी तो जनता के बीच से इंदिरा गांधी का जयघोष गूंजता रहता था।

राहुल गांधी की अधपकी दाढी और पदयात्राओं से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की यादें ताजा हो जाती हैं। चंद्रशेखर जी कई कई बार पदयात्राओं के जरिए अपनी बात आवाम तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में जनसभाओं की बात हो और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र नहीं हो ऐसा भला कैसे हो सकता है। एक लंबे समय तक लोकसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका का निर्वाह करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी आखिरकार प्रधानमंत्री पद के कई अधूरे और पूरे कार्यकाल निभाने में सफल रहे थे। अटल जी की वाकपटुता के उनके विरोधी भी हमेशा ही कायल रहे हैं। अपने विरोधियों के लिए आदरसूचक उपमाएं देकर उनकी खामियां और नाकामियां गिनाने में माहिर अटल बिहारी वाजपेयी इंदिरा गांधी के लिए अपने संबोधन में अक्सर देवी जी शब्द का संबोधन करते थे लेकिन इंदिरा जी की नीतियों से असहमति जताने में वाजपेयी तनिक भी लिहाज नहीं करते थे। अपने भाषण के दौरान अटल जी अक्सर आंखें बंद करके कुछ देर के लिए झपकी सी लेते थे लेकिन उस झपकी के बाद अटल जी जो बोलते थे वह अपने आप में ऐतिहासिक संबोधन बन जाता था।

तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों के दौर में जय प्रकाश नारायण, ललित नारायण मिश्र, राम मनोहर लोहिया, विश्वनाथ प्रताप सिंह, बाबू जगजीवन राम, ज्योति बसु, बीजू पटनायक,मधु दंडवते, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित, बी एल शर्मा ‘प्रेम’, सुरजीत सिंह बरनाला, चंद्रबाबू नायडू,एन डी तिवारी, हरिकिसन सिंह सुरजीत, इंद्रजीत गुप्त, चतुरानन मिश्र जैसे तार्किक भाषण देने वाले राजनेताओं को आज भी लोग याद करते हैं।

साल 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी अब जवान हो चली है। इक्कीसवीं सदी में जन्में बच्चे आज के युवा वोटर हैं। युवा वोटर आज यूट्यूब पर इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को सुनने की पहल करे तो पता चलेगा कि ये नेता आपने भाषणों के दौरान शब्दों की सभ्यता, तर्क की कसौटी, आदरपूर्वक असहमति को किसकदर संयमित होकर रखते थे।

आज के आक्रामक चुनाव प्रचार में दौर में सिर्फ नेताओं से ही शालीनता की अपेक्षा करना बेमानी होगा क्योंकि जनता जनार्दन को भी सुनने और समझने में धीरज धारण करना होगा।

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