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सियासत में -‘ सबसे कठिन जाति अपमाना ‘

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भारत में आज से 9 दिन तक शक्ति की उपासना का पर्व शुरू हो गया है लेकिन दुर्भाग्य कि लोग इन नौ दिनों में भी सत्ता की उपासना में डूबे हैं। अगर सच्चे सनातनी होते तो इन नौ दिनों में चुनावी रैलियां और रोड शो छोड़कर देवी की पूजा-अर्चना करते। एक-दूसरे को गरियाते,आँखें दिखाते या कोसते हुए नजर न आते। सबसे बड़ी बात तो ये है कि सत्ता की उपासना में लगे लोग अब सत्ता हासिल करने के लिए जनता का जातिगत अपमान करने पर उतर आये हैं। गुजरात के भाजपा नेता पुरुषोत्तम रूपला का क्षत्रियों को लेकर दिया गया बयान इसका ताजा उदाहरण है।

नवदुर्गा में ,मै भी सियासत से दूर रहना चाहता था,किन्तु देवी ने स्वप्न में आकर कहा -जैसा देश के भागयविधाता कर रहे हैं उसे देखते हुए सियासत से तुम्हारा दूर रहना उचित नहीं।इसलिए मुझे झुकना पड़ा। आपको बता दूँ कि मै भले ही मंदिर-मस्जिद से तनिक दूरी बनाकर रखता हूँ किन्तु घर में पूजा-पाठ मेरे भी जीवन का नियमित अंग है। मै या मेरे जैसे असंख्य लोग हैं जो आज भी पूजा-पाठ में कैमरे का इस्तेमाल नहीं करते। बहरहाल बात जातिगत अपमान की हो रही थी। सियासत में ये एक बहुत बुरा चलन शुरू हो गया है। इस बुरे चलन का श्रीगणेश भी सत्तारूढ़ दल ने ही अपने गृहराज्य गुजरात से किया है। भाजपा नेता और मोदी जी की केबिनेट में मछली मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपला ने सूबे के क्षत्रियों के बारे में न जाने क्या-क्या सही-गलत बोल दिया। अब सूबे की क्षत्राणियां भाजपा दफ्तर के बाहर जौहर करने के लिए उतावली हैं।पुलिस ने उन्हें बामुश्किल मनाया।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि- जद्यपि जग दारुण दुःख नाना ,सबसे कठिन जाति अपमाना ‘ जाहिर है कि भारत में जाति व्यवस्था एक सच्चाई है और जातिगत अपमान को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाता है, जितना कि जातिगत सम्मान को। देश की राजनीति जातियों के आधार पर ही फैसले करती है । भाजपा के केंद्रीय मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपला ने भी शायद इसी आधार पर क्षत्रियों को अपमानित करने का काम किया है। क्षत्रिय चाहते है कि भाजपा बड़बोले रूपला को चुनाव मैदान से हटाए ,किन्तु भाजपा किसी की भी नहीं सुनती , क्षत्रिय तो हैं किस खेत की मूली ? भाजपा रूपला को मैदान से नहीं हटा रही। ‘प्राण जाएँ ,पर वचन न जाएँ ‘

आपको याद होगा कि कांग्रेस के हीरो राहुल गांधी भी जातिगत अपमान के एक आभासी मामले में सजाएं पा चुके है। संसद की सदस्य्ता भी छीन ली गयी थी उनसे। वो तो देश कि सबसे बड़ी अदालत ने उन्हें बचा लिया। राहुल ने तो किसी जाति का अपमान भी नहीं किया था। उन्होंने तो केवल देश को चूना लगाने वाले मोदियों की श्रृंखला और पंत प्रधान के मोदी होने के संयोग का जिक्र भर किया था। रूपला जी तो राहुल गाँधी से दो किलोमीटर आगे निकल गए। उन्होंने क्षत्रियों को गुजरात की रूखी जाति से भी गया-बीता बता दिय। कह दिया कि क्षत्रिय तो कायर थे, उन्होंने मुगलों से रोटी-बेटी के रिश्ते बना लिए थे।

भाजपा देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है । उसके लिए किसी को सम्मानित करने और अपमानित करने का एक मतलब होता है । गुजरात के क्षत्रिय ही नहीं बिहार के बाम्हन भी अश्विनी चौबे का टिकट काटने से अपने आपको शायद अपमानित महसूस कर रहे हैं। लेकिन मानना पडेगा कि चौबे जी पक्के राष्ट्रवादी हैं, इसलिए जातिगत अपमान का घूँट भी रूह आफजा शर्बत की तरह पी गए। लेकिन सब तो अश्विनी चौबे होते नहीं। तमाम लोग ऐसे हैं कि अपमान की रूह आफजा का एक घूँट भी हलक से नीचे न उतारें ! जातिगत अपमान का घूँट गले से नीचे आसानी से उतरता नहीं है। मध्यप्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे और पूर्व सांसद अनूप मिश्रा भी अश्विनी चौबे की तरह अपमान का घूँट पिए बैठे है। सबका जी मतला रहा है। लेकिन करें तो क्या करें ? बाम्हन क्षत्रियों कि तरह न एकजुट हैं और न उनकी पत्नियों को जौहर करना आता है।

जातिगत अपमान की घटनाये केवल भाजपा में ही नहीं कमोवेश सभी राजनीतिक दलों में होती है। कांग्रेस में भी खूब होती हैं। अब बिहार में ही देख लीजिये। पप्पू यादव इसका उदाहरण है। कांग्रेसी उन्हें अपना नहीं मानते जबकि वे सीना ठोंक कर कह रहे हैं कि वे पक्के कांग्रेसी हैं। पप्पू की अपनी जाति है। हरेक दल में पप्पू यादव होते है। कांग्रेस में 34 फीसदी हैं तो भाजपा में 36 फीसदी। बिना पप्पुओं के किसी भी दल की राजनीति चलती ही नहीं । ये पप्पू किसी न किसी आपराधिक मामले में उलझे हुए होते हैं। ये राहुल जैसे पप्पू नहीं हैं। ये बाहुबली पप्पू हैं। जो मौक़ा आने पर किसी को भी पटखनी दे सकते हैं और पटखनी खा सकते हैं।

गुजरात से सुलगी आग अब राजस्थान ,हिलाचल और न जाने कहाँ-कहाँ तक फैलती दिखाई दे रही है। आग के अनेक रूप है। आग जंगल की भी होती है और पानी की भी । किसी को दावानल कहते हैं तो किसी को बड़वानल। आग को पानी बुझाता है लेकिन जब पानी ही आग लगाता हो तो उसे कौन बुझा सकता है ? ये सवाल नया नहीं है। भाजपा की सोने की लंका में जगह-जगह चिंगारियां उठती दिखाई दे रहीं है। जिस राजपूताने को भाजपा ने हाल के विधानसभा चुनावों में फतह किया था उसी राजस्थान में कस्वां और भाटी अब फूंकने पर आमादा है। चूरू से उठी आग भी जातीय अपमान की वजह से फैली है।

मै चाहता हूँ कि भाजपा इस आग में झुलसने से किसी भी तरह बच जाये ताकि उसका चार सौ पार का सपना पूरा हो जाये। लेकिन भाजपा वाले भी राज हठ पालकर बैठ जाते है। सबसे पहले यूपी वाले टैनी को लेकर भाजपा ने हठ दिखाई ,फिर बृजभूषण को लेकर भाजपा ने अपना हठीलापन सार्वजनिक कर महिला जाति का सार्वजनिक अपमान किया और अब रूपला को लेकर भाजपा अड़ी हुई है । उसे देश के राजपूतों की चिंता नहीं है। भाजपा का स्वाभिमान किसी का भी जातीय अपमान करने का हौसला रखता है। भाजपा किसानों का अपमान कर चुकी । युवाओं का कर चुकी । सैनिकों से पार्टी का काम कराकर सैनिकों का अपमान कर चुकी। मीडिया का अपमान तो पिछले दस साल से भाजपा कर ही रही है।

आने वाले दिन जनता के मान -अपमान के दिन है। अब जनता को तय करना है कि वो अपना मान चाहती है या अपमान ? अपमान का घूँट भी खून के घूँट की तरह कसैला होता है। उसमें आप चाहे जितनी रूह आफजा मिला लीजिये ,कसैलापन नहीं जाता तो नहीं जाता। जागो ! भाग्यविधाताओं जागो !! जागरण ही आज की मांग ह। सभी को नवरात्रि उत्स्व की शुभकामनाएं।

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

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