संदीप शर्मा
चुनावों और चुनावी नारों का बहुत पुराना साथ रहा है। सत्तर के दशक से पहले हुए लोकसभा के चुनावों में भले ही नारों का इतना बोल-बाला नहीं रहा हो लेकिन सत्तर के दशक में तो चुनावी नारे बहुत हद तक वोटर को लुभाने,रिझाने, समझाने और मनाने का काम बखूबी करने लगे। आपातकाल से उपजे हालातों ने खेमेबंदी में बिखरे विपक्ष को एकता का पहला पाठ पढ़ाया। इंदिरा सरकार की ज्यादतियों की बात जनता तक पहुंचाने के लिए विपक्षी कुनबे ने नारा दिया ‘इंदिरा हटाओ देश बचाओ’। ‘खा गई शक्कर पी गई तेल, यह देखो इंदिरा का खेल’। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो कर्नाटक के चिकमंगलूर में लोकसभा के उपचुनाव में इंदिरा गांधी को उम्मीदवार बनाया। इंदिरा के व्यक्तित्व के करिश्में को जनता के मानस पटल पर बिठाने के लिए कांग्रेस ने नारा दिया ‘एक शेरनी सौ लंगूर,चिकमंगलूर,चिकमंगलूर’। चिकमंगलूर में इंदिरा गांधी का शेरनी वाला व्यक्तित्व वास्तव में काम कर गया और इंदिरा जी भारी मतों से चुनाव जीतीं।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी की निर्ममतापूर्वक हत्या से पूरे देश की सहानुभूति कांग्रेस और राजीव गांधी के साथ थी। 1984 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने राजनीतिक नफा हासिल करने के मकसद से ‘जब तक सूरज चांद रहेगा इंदिरा तेरा नाम रहेगा’ का नारा दिया। इतिहास साक्षी है 1984 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने जो प्रचंड बहुत हासिल किया उसकी मिसाल न तो पहले कभी मिली थी और ना ही आज तक ही देखने को मिली है।
1991 के लोकसभा चुनावों में मंडल और कमंडल का मुद्दा असरदार रहा। भारतीय जनता पार्टी ने ‘राम लला हम आएंगे,मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा दिया। उत्तर भारत के राज्यों में मंडल-कमंडल के नारों ने चुनाव परिणामों को बहुत हद तक प्रभावित किया था। साल 1993 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन किया तो उन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीतिक फिजाओं में यह नारा भी खूब सुनने को मिला कि ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’।
एक लंबे समय तक लोकसभा में विपक्ष के नेता का दमदार दायित्व निभाने वाले वाले अटल जी के नाम और काम पर वोट मांगने के लिए भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों ने नारा इजाद किया ‘सबको परखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’ उस दौर में सब पर भारी अटल बिहारी’ का नारा भी खूब प्रचलन में रहा। ‘अटल, आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिन्दुस्तान’ के नारे ने भी जनता के बीच अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की छवि को भुनाने में अहम भूमिका अदा की। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय भारतीय जनता पार्टी ने ‘इंडिया साइनिंग’ और ‘फील गुड’ का नारा दिया। वहीं कांग्रेस का नारा कि ‘सारे देश से नाता है,देश चलाना आता है’ 2004 के लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक असरकारक रहा। चाय पर चर्चा कार्यक्रम के लिए भारतीय जनता पार्टी के संगठनकर्ताओं ने ‘मैं भी चौकीदार’,मोदी है तो मुमकिन है जैसे नारों को सत्ता प्राप्ति का नारामंत्र बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।