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गुस्ताख़ी माफ 30.3.2024
बचपन ही से हम पड़े, राजनीति में कूद।
जन्मजात नेतागिरी, थी हम में मौज़ूद।
थी हम में मौज़ूद, छात्र-जीवन भी सारा।
करी लीडरी ख़ूब, गुणों को और निखारा।
कह साहिल कविराय, उम्र अब अपनी पचपन।
नेता ही हम रहे, जवानी हो या बचपन।
प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल