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ईश्वर वो नहीं देता जो आप चाहते हैं बल्कि वो देता है जो आपके लिए बेहतर है : जैन साध्वी डा. सुयशा

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रघुनंदन पराशर जैतो

जैतो,24 मार्च : जिनशासन पारसमनी साध्वी श्री समता जी महाराज राष्ट्रज्योति डॉ साध्वी श्री सुयशा जी महाराज श्री प्रगति जी महाराज ठाणे -7 एस.एस. जैन सभा जैतो में विराजमान हैं, डॉ.साध्वी सुयशा जी ने अपने प्रवचनों में बताया कि एक समुद्र में एक कछुवा रहता था। कछुवा उस समुद्र में अकेला रहता,खूब मज़े से खाता पीता और घूमता। समुद्र से कछुवे की अच्छी दोस्ती हो गई थी। उसकी लहरों पर अठखेलियाँ करना, उसकी लहरों के साथ झूमना कछुवे को खूब भाता था।कछुवे की ज़िन्दगी बड़े मज़े में कट रही थी। एक दिन प्रातःकाल कछुवे ने रेत पर खेलने की योजना बनाई। समुद्र से निकलकर वह रेत पर खेलने पहुंचा। कछुवा रेत पर आहिस्ता आहिस्ता चलता, उसके रेत पर चलने की वजह से उसके पैरो के निशान बनते जाते।जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता पीछे-पीछे उसके निशान बनते जा रहे थे। उसे ऐसा करने में बड़ा मज़ा आ रहा था, उसने सोचा क्यों न गोल-गोल घूम कर बड़े आकार का वृत्त बनाया जाए।कछुवे ने बड़ी मेहनत से एक बड़ा वृत्त बनाया। उसे ऐसा करने में काफ़ी वक़्त लगा। कछुवा बड़ा खुश था कि उसने अपने पैरो के निशान से एक बड़ा सुंदर वृत्त बनाया है। फिर क्या था इसी बीच समुद्र की एक लहर आई और कछुवे द्वारा बनाए वृत्त को बहा ले गई।कछुवा उदास हो गया। उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। उसने फिर से वही किया, परिश्रम करके फिर से एक वृत्त बनाया। समुद्र की लहरों ने इस बार भी वही किया। कछुवा बार-बार वृत्त बनाता, समुद्र की लहरें उसके द्वारे बनाये वृत्त को हर बार बहा ले जाती।कछुवे को क्रोध आ गया, वह समुद्र के पास पहुँचा और शिकायत भरे लहजे में समुद्र से कहा “मित्र तुम तो मुझे मित्र कहते हो, क्या तुमसे मेरी ख़ुशी नहीं देखी जाती”? इतनी मेहनत से मैंने कई बार वृत्त बनाया तुमने उसे मिनटों में बहा दिया। ये कैसी मित्रता है?समुद्र मुसकुराया और बोला ” हे मित्र घाट के उस पार कुछ मछुवारे नदी पार करके इस तरफ़ ही आ रहे है, ऐसे में अगर वह तुम्हारे क़दमों के निशान देखते तो तुम्हारी जान को ख़तरा हो सकता था।अगर उन्हें तुम्हारे बारे में मालूम चलता तो वह तुम्हें पकड़ कर ले जाते और पका कर खा जाते। ज़िंदा रहोगे तभी तो अगली बार वृत्त बना पाओगे। मैंने तो अपनी मित्रता का फ़र्ज़ अदा किया है। कछुवा समुद्र की बात सुनकर लज्जित हो गया।

निष्कर्ष-कई बार चीज़ें हमारे हिसाब से नहीं होती। हम बहुत परिश्रम करते है, खुद को तपाते है परन्तु वह चीज़ हमें नहीं मिलती, इसका मतलब ये नहीं की हम उस वस्तु के काबिल नहीं है या ईश्वर हमारे साथ बुरा कर रहे है।इसका मतलब ये भी हो सकता है कि वह हमें इससे बेहतर देना चाहते हो। हर सिक्के के दो पहलू होते है, किसी एक पहलू को देखकर कुछ भी तय नहीं करना चाहिए। ईश्वर वो नहीं देता जो आप चाहते है, ईश्वर वो देता है जो आपके लिए बेहतर है। इसलिए नियति के फैसले पर उँगली उठाने से पहले आप थोड़ा संयम ज़रूर रखें।

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