भाजपा का सब्र लाजबाब है। इतना सब्र भाजपा कहाँ से लाती है आखिर ? भाजपा ने आम चुनाव में उतरने से पहले कालेधन की कालिख से अपने आपको बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट का इलेक्टोरल बांड का फैसला धूमिल करने के लिए आखिर सीएए को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी। भाजपा का ये फैसला है तो विवादास्पद लेकिन है आत्मघाती फैसल। ये फैसला भाजपा की नाव पार भी लगा सकता है और नाव डूबा भी सकता है।
भाजपा ने नागरिकता संशोधन का बीज चार साल पहले ९ दिसंबर 2019 को बोया था। इस बीज को अंकुरित करने के लिए भाजपा ने चार साल तीन महीने तक चुपचाप खाद-पानी दिया और जैसे ही इलेक्टोरल बांड की आंधी ने भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी करने की स्थितियां बनाईं वैसे ही भाजपा ने नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने का ऐलान कर दिया। इस क़ानून के खिलाफ देश में शुरू में जो गुबार उठा था उसे भाजपा ने लंबा खींचकर पहले ही ठंडा कर दिया था ,लेकिन अब हालात बदल गए है । देश का विपक्ष भाजपा के इस दांव के सामने अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
नागरिकता क़ानून में संशोधन बोतल में बंद जिन्न की तरह है। भाजपा इस जिन्न के जरिये एक नहीं अनेक अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने का इंतजाम करना छाती ह। भाजपा को पता है की पिछले एक दशक में अल्पसंख्यक समुदाय के अनेक तबके भाजपा से नाराज है। िनमने मुसलमान,ईसाई और सिख सभी शामिल है। अब इन समुदाय के विदेशियों के लिए नागरिकता का रास्ता आसान कर भाजपा चुनाव में इन सभी अल्पसंख्यक समूहों की सहानुभूति बटोरना चाहती है। ये दूर की कौड़ी नहीं बल्कि एक सोचा-समझा हुआ गणित है। नागरिकता संशोधन विधेयक से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। आपको याद होगा की नागरिकता संशोधन विधेयक 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था। 9 दिसंबर 2019 को ही विधेयक सदन से पारित हो गया। 11 दिसंबर 2019 को यह विधेयक राज्यसभा से पारित हुआ था।
भारत का नागरिकता अधिनयम ६९ साल पुराना है । इसकी आधारशिला अंग्रेजों के जमाने की है। भाजपा इस क़ानून के जरिये जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की तरह नागरिकता अधिनियम में तब्दीली करने के लिए कमर कसकर बैठी हुई थी। नागरिकता अधिनियम में देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रावधान किया गया है। आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी साल 11 महीने भारत में रहना चाहिए। कानून में छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) और तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से संबंधित व्यक्तियों के लिए 11 वर्ष की जगह छह वर्ष तक का समय है। कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
मुमकिन है कि भाजपा इस काम को पहले अंजाम देती लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कोरोना के कारण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में देरी हुई। लेकिन अब इसे हम लागू कर दिया गया है। भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में कहा था कि वह पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।भाजपा ने एक पंथ दो काज कर लिए है। एक तो इस क़ानून के जरिये भाजपा अपने अल्पसंख्यक प्रेम को स्थापित करने के साथ होई इलेक्टोरल बांड की पोल खुलने से होने वाली फजीहत से भी बचना चाहती है। विपक्ष अब इलेक्टोरल बांड के मुद्दे को उछाले या नागरिकता संशोधन विधेयक के इस नए मुद्दे को उछाले।
इस नए तूफ़ान के बाद अब देश की राजनीति में नया रंग आने वाला है। विपक्ष पहले से ही सत्तारूढ़ दल की चालबाजियों का मुकाबला नहीं कर पा रहा है ,और अब ये नागरिकता संशोधन क़ानून लागू कर भाजपा ने समूचे विपक्ष को निहत्था कर दिया है। इस क़ानून के लागू करने में भाजपा को फिलहाल कोई दिक्कत होने वाली नहीं है क्योंकि अभी सब चुनावी जंग में कूद रहे हैं। इस क़ानून पर अमल तो चुनावों के बाद से होगा,हाँ चुनावों में भाजपा इस क़ानून के जरिये रूठे हुए अल्पसंख्यकों के बीच अपनी खोई हुई साख बचने का प्रयास जरूर करेगी। इस संशोधन कानून का फ़ायद भाजपा को सीमावर्ती क्षेत्रों में मिल सकता है।
भाजपा को इस बात के लिए बधाई या शाबासी दी जा सकती है की वो अपने खिलाफ उठने वाली हर आंधी के मुकाबले एक नया इंतजाम करके रखती है। आज देश की जनता महंगाई ,बेरोजगारी और दुसरे तमाम मुद्दों को भूलने की बीमारी का शिकार बन चुकी ह। अवाम को धर्म की सुरा पहले से ही पिलाई जा चुकी है। इस नशे को उतरने नहीं दिया जा रहा है। अब देखना है की इस क़ानून को लागू कर सत्तारूढ़ दल देश के अम्नो-अमान को महफूज रख पाती है या बिगाड़ती है ?ये घोषणा माहे रमजान के समय की गयी है और इसके भी अलग निहितार्थ हैं। आगे-आगे देखिये होता है क्या ?आपको याद होगा की देश के अनेक राहों ने इस क़ानून का विरोध किया है और किसी भी सूरत में इस क़ानून को लागू न किये जाने की बात कही है। असम,केरल और बंगाल इस मुद्दे पर पहले से खिलाफ हैं।
@ राकेश अचल