हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 77 प्रतिशत कमी

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हरियाणा अगले दो साल में पराली जलाने की समस्या को जड़ से खत्म कर देगा। गत 6 नवम्बर, 2025 तक राज्य में पराली जलाने की 206 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह संख्या 888 थी। इस प्रकार राज्य में 77 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।

यह जानकारी मुख्य सचिव श्री अनुराग रस्तोगी ने आज वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक के पश्चात दी। बैठक की अध्यक्षता आयोग के अध्यक्ष श्री राजेश वर्मा ने की।

श्री वर्मा ने इसके लिए हरियाणा सरकार के अधिकारियों और किसानों के सामूहिक प्रयासों की सराहना की। उन्होंने पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने के लिए खास तौर पर करनाल और कुरुक्षेत्र जिलों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अगले दस अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए जिला प्रशासन कड़ी निगरानी रखे ताकि पराली जलाने की घटना न हो।

बैठक के बाद मुख्य सचिव ने बताया कि हरियाणा ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए त्रि-आयामी रणनीति अपनाई है, जिसमें पराली का इन-सिटू, एक्स-सिटू और पशु चारे के रूप में उपयोग शामिल हैं। राज्य के कुल 39.31 लाख एकड़ धान क्षेत्र में से 44.40 लाख टन अवशेष इन-सिटू, 19.10 लाख टन एक्स-सिटू, और 22 लाख टन चारे के रूप में उपयोग किया जा रहा है। अब तक 19,670 एकड़ क्षेत्र का धान से फसल विविधीकरण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, 1,74,064 एकड़ क्षेत्र में डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस तकनीक अपनाई गई है, जिससे पानी की बचत और पराली उत्पादन में कमी आई है।

राज्य सरकार ने पर्यावरण-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहनों में उल्लेखनीय वृद्धि की है। इन-सिटू और एक्स-सिटू प्रबंधन के लिए 1,200 रुपये प्रति एकड़, फसल विविधीकरण के लिए 8,000 रुपये प्रति एकड़, और डीएसआर के लिए ’4,500 रुपये प्रति एकड़ की सहायता दी जा रही है। इन योजनाओं हेतु कुल ’471 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। किसानों को बायो-डीकम्पोजर पाउडर निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसे चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा 2 लाख एकड़ क्षेत्र में यह परियोजना लागू की जा रही है।

चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 94 करोड़ रुपये की लागत से 7,700 से अधिक नई मशीनें स्वीकृत की गई हैं। इस योजना पर इस वर्ष कुल 250.75 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, जिसमें केंद्र सरकार का अंशदान 150.45 करोड़ रुपये और राज्य का 100.30 करोड़ रुपये है।

राज्य में इस समय 8.17 लाख टन क्षमता के 31 पेलेटाइजेशन/ब्रीकेटिंग संयंत्र,  111.9 मेगावाट क्षमता के 11 बायोमास पावर प्लांट, एक 2जी एथेनॉल संयंत्र, 2 सीबीजी प्लांट और 5 थर्मल पावर प्लांट संचालित हैं, जो संयुक्त रूप से 16.64 लाख टन धान के पराली का उपयोग कर रहे हैं। गैर-एनसीआर जिलों में ईंट भट्ठों को निर्देश दिए गए हैं कि वे 2025 तक 20 प्रतिशत और 2028 तक 50 प्रतिशत तक पराली आधारित पेलेट्स का उपयोग करें।

राज्य में 10,028 नोडल अधिकारी तैनात किए गए हैं और हरसेक की सैटेलाइट निगरानी से वास्तविक समय में पराली जलाने की घटनाओं का पता लगाया जाता है। प्रत्येक सत्यापित घटना में एफआईआर दर्ज की जा रही है तथा पर्यावरण मुआवजा भी लगाया जा रहा है। अब तक 87 मामलों में 4.10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से 3.20 लाख रुपये की वसूली की जा चुकी है। इसके अलावा, 87 किसानों के रिकाॅर्ड में रेड एंट्री की गई है। जनवरी से अक्टूबर, 2025 के बीच एनसीआर क्षेत्र मंे वैध पाॅल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट न होने के कारण 3,25,989 वाहनों के चालान जारी किए गए हैं।

इस वर्ष दर्ज कचरा जलाने की 169 घटनाओं पर त्वरित कार्रवाई की गई है। गुरुग्राम और फरीदाबाद में 86 सीसीटीवी कैमरों से डंपसाइट्स की निगरानी की जा रही है ताकि आग की किसी भी घटना पर तुरंत नियंत्रण पाया जा सके।

बैठक में एनसीआर में वाहनों और धूल से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए भी विस्तार से चर्चा की गई।

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