मुद्दे की बात : ट्रंप का नोबेल हासिल करने का सपना होगा सच !
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इजारइल के बाद पाकिस्तान के सिफारिश करते ही अमेरिका ने ईरान पर किया था अटैक
इजराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा है कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया है। नेतन्याहू ने हाल ही में ट्रंप को एक चिट्ठी सौंपी, जिसे उन्होंने नोबेल प्राइज़ कमेटी को भेजा है। उन्होंने कहा, ट्रंप एक के बाद एक कई देशों और क्षेत्रों में शांति कायम करने में लगे हैं।
फिलहाल दुनियाभर में यह मुद्दा चर्चा में है और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रंप लंबे समय से नोबेल शांति पुरस्कार पाने की इच्छा रखते हैं। उनको नोबेल के लिए प्रस्तावित करने वाले नेतन्याहू अकेले नहीं हैं। जून में पाकिस्तान ने भी घोषणा की थी कि वह ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की योजना बना रहा है। पाकिस्तान का दावा था कि भारत के साथ युद्धविराम में ट्रंप की अहम भूमिका थी।
पाकिस्तान के बयाने के कुछ ही समय बाद अमेरिका ने ईरान पर बमबारी शुरू कर दी थी, जिसकी तीखी आलोचना हुई। नोबेल शांति पुरस्कार को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक माना जाता है। छह श्रेणियों में दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार को स्वीडिश वैज्ञानिक, उद्योगपति और समाजसेवी अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार स्थापित किया गया था। शांति पुरस्कार के विजेताओं का चयन नॉर्वे की संसद की नियुक्त पांच मेंबरी समिति करती है। अगर ट्रंप को यह पुरस्कार मिलता है तो उन्हें एक विवादास्पद विजेता के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि यह भी सच है कि नोबेल शांति पुरस्कार को अक्सर उसकी राजनीतिक प्रकृति के कारण आलोचना झेलनी पड़ी। इसके उलट विज्ञान, साहित्य और अर्थशास्त्र जैसे अन्य पांच क्षेत्रों के नोबेल पुरस्कार अपेक्षाकृत कम विवादों में रहे।
मसलन, 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिला। यह फ़ैसले पर दुनियाभर के साथ ख़ुद ओबामा भी हैरान थे। उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा कि, आख़िर किस लिए ये पुरस्कार मिला ? नोबेल शांति पुरस्कार के नामांकन की आख़िरी तारीख़ ओबामा के शपथ ग्रहण के महज़ 12 दिन बाद ही समाप्त हो गई थी। ओबामा के राष्ट्रपति रहते अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया में सैन्य संघर्षों में सक्रिय रूप से शामिल रहा। फ़लस्तीन के नेता यासिर अराफ़ात को 1994 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। उन्हें यह सम्मान तत्कालीन इजराइली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक रबिन और विदेश मंत्री शिमोन पेरेस के साथ साझा रूप से मिला था। तीनों को ओस्लो शांति समझौते पर काम के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। हालांकि अराफ़ात सशस्त्र संघर्ष और छापामार गतिविधियों में शामिल रहे थे, जिससे इस फ़ैसले को लेकर विवाद हुआ। यहां तक कि नोबेल कमेटी के भीतर भी मतभेद उभरे। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को 1973 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया। उनको वियतनाम में युद्ध-विराम के लिए अहम भूमिका निभाने पर पुरस्कार दिया गया। हालांकि, कंबोडिया में गुप्त रूप से बमबारी कराने और दक्षिण अमेरिका में सैन्य तानाशाहों का समर्थन करने में किसिंजर की भूमिका रही थी। लिहाजा उनको यह पुरस्कार देने की कड़ी आलोचना हुई थी। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने तंज़ कसते इसे नोबेल वॉर प्राइज़ कहा था।
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को 2019 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। इरीट्रिया के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशों के लिए उन्हें ये पुरस्कार मिला था। हालांकि अहमद की विवादित पृष्ठभूमि के चलते अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इसकी बड़ी निंदा हुई थी। म्यांमार में सैन्य शासन के ख़िलाफ़ अहिंसक संघर्ष के लिए आंग सान सू ची को 1991 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। हालांकि 20 साल बाद उन्हें ख़ासकर मुस्लिम रोहिंग्या समुदाय के जनसंहार और मानवाधिकार उल्लंघनों के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाने पर आलोचना झेलनी पड़ी। कीनिया की वंगारी मथाई नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली अफ़्रीकी महिला हैं। बायोलॉजिस्ट वंगारी मथाई को ये पुरस्कार ग्रीन बेल्ट मूवमेंट के लिए दिया गया. इसके तहत लाखों पेड़ लगाए गए और पर्यावरण की हिफ़ाज़त की गई। हालांकि उन्हें ये पुरस्कार देने का फ़ैसला भी विवादों में घिर गया। उन्होंने एचआईवी और एड्स पर विवादास्पद बयान दिए थे। शांति कैटेगरी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नोबेल ना देना इस पुरस्कार कमेटी की ‘सबसे बड़ी चूक’ मानी जाती है। 2006 में नोबेल चयन समिति के अध्यक्ष रहे गेयर लुंडेस्टाड ने इसे नोबेल इतिहास की ‘सबसे बड़ी भूल’ बताया था।
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