61वाँ म्युनिख (जर्मनी) सुरक्षा सम्मेलन 14-16 फ़रवरी 2025 का आगाज़ 

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भारत एक सफ़ल लोकतांत्रिक देश जो लोगों के जीवन को बेहतर बना रहा है

 

आज़ादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया क्योंकि हमारी संस्कृति शुरू से ही परामर्श और बहुलतावाद पर आधारित रही है,सराहनीय विचार-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

 

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर दुनियाँ का करीब करीब हर देश किसी न किसी वैश्विक मंच में हितधारक होने के नाते से जुड़ा है, जिससे उनके हितों को बल मिलता है व उनके देश के बारे में दुनियाँ को गहराई से जानने में अनेक देश उत्सुक होते हैं, जिससे उन्हें वैश्विक पहचान मिलती है, उनकी खूबियाँ वैश्विक पटल पर आती है। अनेक अंतरराष्ट्रीय मंच अधिकृत हैं जिनमें पारित प्रस्ताव को सभी सदस्य देशों को मानना पड़ता है, तो कई निजी मंच भी होते हैं जिनमें से एक है, म्युनिख (जर्मनी) सुरक्षा सम्मेलन जो अभी जर्मनी के म्यूनिख में 61 वाँ सम्मेलन 16 फरवरी 2025 को समाप्त हुआ, जिसमें तीनों दिन तक अमेरिकी उपराष्ट्रपति, भारतीय विदेश मंत्री और गृहमंत्री यूक्रेन के राष्ट्रपति सहित 60 से अधिक नेता क्रमवार शामिल हुए। तीन दिनों तक अनेक विषयों पर चर्चा की गई जिसमें यूक्रेन-रूस युद्ध समस्या सुलझाना, लोकतंत्र को मजबूत करना सहित तीनों दिन अनेक विषयों पर क्रमवार चर्चा की गई। इस सम्मेलन में, संवाद के माध्यम से शांति विषय के अंतर्गत, नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के वरिष्ठ राजनेताओं, राजनयिकों, सैन्य और सुरक्षा विशेषज्ञोंके साथ- साथ चीन,भारत ईरान जापान दक्षिण कोरिया और रूस जैसे अन्य देशों के वरिष्ठ राजनेताओं, राजनयिकों, सैन्य और सुरक्षा विशेषज्ञों को सुरक्षा और रक्षा नीतियों में वर्तमान मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया है।सम्मेलन का उद्देश्य सामयिक मुख्य सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करना तथा नेटवर्क सुरक्षा की अवधारणा के अनुरूप वर्तमान और भविष्य में मुख्य सुरक्षा चुनौतियों पर बहस और विश्लेषण करना है। सम्मेलन का मुख्य बिंदु 21वीं सदी में ट्रान्साटलांटिक संबंधों के विकास के साथ-साथ यूरोपीय और वैश्विक सुरक्षा पर चर्चा और विचारोंका आदान-प्रदान है।सम्मेलन निजी तौर पर आयोजित किया जाता है और इसलिए यह कोई आधिकारिक सरकारी कार्यक्रम नहीं है। इसका उपयोग केवल चर्चा के लिए किया जाता है।चूँकि भारत ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में सहभागी होकर अपने विचार रखे इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे 6वें म्युनिख (जर्मनी)सुरक्षा सम्मेलन 14 से 16 फरवरी 2025 का आगाज़।

साथियों बात अगर हम म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन को समझने की करें तो, पिछले चार दशकों में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नीति निर्णयकर्ताओं द्वारा विचारों के आदान-प्रदान के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्वतंत्र मंच बन गया है। हर साल यह दुनियाँ भर के 70 से अधिक देशों के लगभग 350 वरिष्ठ लोगों को वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों पर गहन बहस में शामिल होने के लिए एक साथ लाता है। उपस्थित लोगों की सूची में राष्ट्राध्यक्ष,सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख , मंत्री,संसद के सदस्य,सशस्त्र बलों,विज्ञान,नागरिक समाज के उच्च पदस्थ प्रतिनिधि,साथ ही व्यापार और मीडिया शामिल हैं ।यह सम्मेलन हर साल फरवरी में आयोजित किया जाता है।इसका आयोजन स्थल म्यूनिख ,बवेरिया जर्मनी में होता है। इस सम्मेलन में, संवाद के माध्यम से शांति विषय के अंतर्गत, नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के वरिष्ठ राजनेताओं, राजनयिकों, सैन्य और सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ-साथ चीन , भारत , ईरान , जापान , दक्षिण कोरिया और रूस जैसे अन्य देशों के वरिष्ठ राजनेताओं, राजनयिकों, सैन्य और सुरक्षा विशेषज्ञों को सुरक्षा और रक्षा नीतियों में वर्तमान मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। सम्मेलन का उद्देश्य सामयिक मुख्य सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करना तथा नेटवर्क सुरक्षा की अवधारणा के अनुरूप वर्तमान और भविष्य में मुख्य सुरक्षा चुनौतियों पर बहस और विश्लेषण करना है। सम्मेलन का मुख्य बिंदु 21वीं सदी में ट्रान्साट लांटिक संबंधों के विकास के साथ-साथ यूरोपीय और वैश्विक सुरक्षा पर चर्चा और विचारों का आदान-प्रदान हैसम्मेलन निजी तौर पर आयोजित किया जाता है और इसलिए यह कोई आधिकारिक सरकारी कार्यक्रम नहीं है।बाध्यकारी अंतर-सरकारी निर्णयों के लिए प्राधिकरण मौजूद नहीं है। इसके अलावा, सामान्य परंपराओं के विपरीत – कोई आम अंतिम विज्ञप्ति नहीं है। उच्च स्तरीय बैठक का उपयोग प्रतिभागियों के बीच अलग-अलग पृष्ठभूमि चर्चाओं के लिए भी किया जाता है। अपवाद वैश्विक राजनीतिक निर्णयों की प्रस्तुति है, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच न्यू स्टार्ट निरस्त्रीकरण समझौते के लिए अनुसमर्थन के साधनों काआदान-प्रदान जो 2011 में सुरक्षा सम्मेलन के समापन पर आयोजित किया गया था।

साथियों बात अगर हम म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में केंद्रीय गृहमंत्री भारत द्वारा प्रतिनिधित्व कर अपने विचार प्रकट करने की करें तो, उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ मुद़्दे पर अपने विचार रखे।उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में देशों के बीच एकता जरूरी है।पीएम के नेतृत्व में भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक समुदाय के साथ मजबूती से खड़ा है। आतंकवाद की फंडिंग के लिए सीमा पार संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही नई तकनीक के विकास के कारण आतंकवादियों के लिए धन के प्रवाह के लिए उपयोग किए जाने वाले स्रोत, तरीके और चैनल तेजी से पेचीदा होते जा रहे हैं। यह वैश्विक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बन रहे हैं।उन्होंने आतंकी फंडिंग का मुकाबला करने, जोखिमों को लेकर सतर्क होने और नई दिल्ली में आयोजित एनएमएफटी सम्मेलन 2022 की चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए बहुपक्षीय सहयोग के मुद्दे पर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए जर्मन सरकार का आभार जताया।

साथियों बात अगर हम भारतीय विदेश मंत्री द्वारा रखें अपने विचारों की करें तो,भारत चुनौतियों के बावजूद लोकतंत्र के प्रति वफादार है। भारत हमारे सामने आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद, यहां तक ​​कि कम आय के बावजूद, लोकतांत्रिक मॉडल के प्रति वफादार रहा है, जो कि दुनियाँ के हमारे हिस्से में भी देखने को मिलता है। हम लगभग एकमात्र देश हैं जिसने ऐसा किया है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, भारत को एक ऐसे लोकतंत्र के रूप में रेखांकित किया जो परिणाम देता है। प्रचलित राजनीतिक निराशावाद से असहमत। विदेशी हस्तक्षेप पर अपने विचार व्यक्त किए। जयशंकर के अलावा, पैनल में नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोर, अमेरिकी सीनेटर एलिसा स्लोटकिन और वारसॉ के मेयर रफाल ट्रजास्कोवस्क शामिल थे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत 80 करोड़ लोगों को पोषण सहायता देता है। इस प्रकार उन्होंने अमेरिकी सीनेटर एलिसा स्लोटकिन की इस टिप्पणी का खंडन किया कि लोकतंत्र खाने की व्यवस्था नहीं करता।

साथियों बात अगर हम अंतिम सत्र भूमि बहाली और सुरक्षा पर बातचीत की करें तो, जब भूमि संघर्ष का स्रोत बन जाती है? तीन अरब लोगों के लिए, भूमि उनके अस्तित्व और विकास के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन वैश्विक भूमि का 20 से 40 प्रतिशत हिस्सा पहले से ही क्षरित या क्षरित हो रहा है, कई समुदाय इस महत्वपूर्ण संसाधन को अपनी आँखों के सामने गायब होते हुए देखते हैं। जैसे-जैसे स्वस्थ भूमि दुर्लभ होती जाती है, उत्पादक भूमि पर प्रतिस्पर्धा और विवाद अधिक होते जाते हैं। पिछले 60 वर्षों में, 40 प्रतिशत अंतरराज्यीय संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े रहे हैं। हालाँकि, भूमि बहाली की सहयोग, लचीलापन-निर्माण और शांति-प्रेरक क्षमता का अभी भी पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया गया है। इस अंतर को पाटने के लिए, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) ने भूमि, शांति और सुरक्षा के बीच संबंधों पर ग्राउंड फॉर पीस रिपोर्ट तैयार की , जिसे थिंक टैंक एडेल्फी रिसर्च ने साकार किया और 2024 में यूएनसीसीडी के 16वें सम्मेलन में प्रस्तुत किया। रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर, यूएनसीसीडी और एडेल्फी रिसर्च द्वारा आयोजित यह वार्तालाप इस बात की पड़ताल करता है कि सुरक्षा समुदाय के लिए भूमि क्यों मायने रखती है। यह भूमि क्षरण, संघर्ष और मानव सुरक्षा के बीच संबंधों और संघर्ष को रोकने, सहयोग को बढ़ावा देने और लचीलेपन को मजबूत करने में भूमि बहाली की भूमिका पर प्रकाश डालता है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 61वाँ म्युनिख (जर्मनी) सुरक्षा सम्मेलन 14-16 फ़रवरी 2025 का आगाज़।भारत एक सफ़ल लोकतांत्रिक देश जो लोगों के जीवन को बेहतर बना रहा है।आज़ादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया क्योंकि हमारी संस्कृति शुरू से ही परामर्श और बहुलतावाद पर आधारित रही है,सराहनीय विचार है।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425*

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