पंजाब/यूटर्न/4 दिसंंबर: पंजाब के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सुखबीर बादल पर हुए हमले के बाद उनकी सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अमृतसर के पुलिस कमिश्नर के बयान के बाद ये सवाल उठाए जा रहे हैं। अमृतसर पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर का कहना है कि सुखबीर सिंह बादल जी जो यहां सेवा कर रहे थे उनके लिए हमने सुरक्षा कड़ी की गई थी। उसमें एआईजी लेवल के एक अधिकारी, 2 एसपी, 2 डीएसपी और 175 पुलिस कर्मी तैनात थे। अब सवाल उठ रहे है कि इतनी सुरक्षा के बीच भी कोई शख्स पिस्तौल लेकर सुखबीर बादल के पास कैसे पहुंच गया। क्या पुलिस गोल्डन टेंपल या सुखबीर बादल के आसपास जा रहे लोगों को तलाशी नहीं ले रही थी।
पुलिस कर रही खुद की तारीफ
पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह का कहना है कि हमारे पुलिसकर्मी बहुत अलर्ट थे उसी वजह से ये वारदात असफल हुई। इसमें नारायण सिंह चोहरा (हमलावर) जिनका पुराना आपराधिक रिकॉर्ड है उनको गिरफतार किया गया। मामला दर्ज कर हर एंगल से जांच की जा रही है। जांच में सामने आया है कि आरोपी मंगलवार को भी श्री हरमंदिर साहिब में घूमता देखा गया था।
पुलिस को मिला था खूफिया इनपुट
सूत्रों की मानें तो खुफिया इनपुट मिलने के बाद पुलिस भी अलर्ट थी और उस पर नजर रख रही थी। अकाली नेताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने सुखबीर बादल की सुरक्षा में कोताही बरती है। वहीं एडीसीपी हरपाल सिंह ने बताया कि सुरक्षा के पुखता इंतजाम थे। सुखबीर बादल को उचित सुरक्षा दी गई थी। हमलावर कल भी यहां था। आज भी उसने सबसे पहले गुरु जी को नमन किया। गोली किसी को नहीं लगी है।
दल खालसा का सदस्य
आरोपी नारायण सिंह चोरहा डेरा बाबा नानक का रहने वाला बताया जा रहा है। आरोपी वह दल खालसा का सदस्य है। आरोपी पर कई क्रिमिनल केस है। उसपर हथियारों की तस्करी का भी आरोप है। वो कई मामलों में सजा भी काट चुका है। उस पर करीब एक दर्जन मामले दर्ज हैं। नारायण सिंह चंडीगढ़ जेल ब्रेक कांड का भी आरोपी है। वह चंडीगढ़ की बुरैल जेलब्रेक मामले में भी आरोपी था।
आतंकियों की मदद करने का लगा था आरोप
चंडीगढ़ की बुरैल जेल से चार खालिस्तानी आतंकी साल 2004 में फरार हो गए थे। नारायण सिंह पर इन आतंकियों की मदद करे का आरोप है। हालांकि इस मामले में कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर कर दिया था। उसने जेल में कई साथ बिताए थे। नारायण सिंह ने अमृतसर सेंट्रल जेल में भी पांच साल गुजारे हैं। वो खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और अकाल फेडरेशन से जुड़ा हुआ था।
पूर्व राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्री भी बने तनखैया, गुरुद्वारे में की थी सेवा
अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल से पहले कई नेताओं को अकाल तखत ने तनखैया घोषित किया। इनमें पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और बूटा सिंह, पंजाब के पूर्व मुखयमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला और कैप्टन अमरिंदर सिंह भी शामिल हैं। 1984 में गोल्डन टेंपल से आतंकवादियों से मुक्त कराने के लिए सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और केंद्रीय मंत्री को तनखैया घोषित किया गया। ज्ञानी जैल सिंह को लिखित माफी मांगने पर माफ कर दिया गया, मगर बूटा सिंह को तखत ने समाज से बेदखल कर दिया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के 10 साल बाद बूटा सिंह अकाल तखत के सामने पेश हुए और माफी मांगी थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद बाबा संता सिंह ने अकाल तखत की मुरंमत की थी, वह भी डेढ़ दशक तक तनखैया बने रहे। संता सिंह को दो दशक बाद माफी मिली थी।
सुरजीत सिंह बरनाला भी बने तनखैया
अप्रैल 1986 में सेना ने पंजाब में दोबारा ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया। तत्कालीन सीएम सुरजीत सिंह बरनाला ने गोल्डन टेंपल में छिपे आतंकियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन चलाने की इजाजत दी थी। सिख भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में बरनाला को भी तनखैया घोषित किया गया। बरनाला को जुर्माना भरने के अलावा स्वर्ण मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के जूते साफ करने की ड्यूटी दी गई। सुरजीत सिंह बरनाला ने पांच साल बाद सजा का पालन किया और 21 दिनों तक गुरुद्वारे में सेवा की। इतिहास में और भी कई बड़े नाम हैं, जो तनखैया घोषित किए गए। महाराजा रणजीत सिंह को 1802 में मुस्लिम नर्तकी मोरन सरकार से शादी करने के कारण सजा मिली थी। 1961 में अकाली नेता तारा सिंह और संत फतेह सिंह भी इस लिस्ट में शामिल हो चुके हैं।
तनखैया’ का क्या मतलब है?
सिख धर्म में ‘तनखैया’ घोषित किए जाने का मतलब है किसी व्यक्ति को धार्मिक संहिता का उल्लंघन करने का दोषी पाया जाना। यह शब्द आस्था की परंपराओं में निहित है। इसमें गलत काम की सार्वजनिक स्वीकृति शामिल है। जहां आरोपी को गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में समुदाय, संगत के सामने माफी मांगनी चाहिए। इसके बाद एक सजा दी जाती है। इसमें आम तौर पर सेवा के कार्य शामिल होते हैं। जैसे कि गुरुद्वारों की सफाई करना, बर्तन धोना और अन्य कार्य जो विनम्रता और पश्चाताप को दर्शाते हैं।
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