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रामायण को मंदिर मान इसका परायण करना चाहिए : श्री कृष्ण महाराज

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Ludhiana 2,अक्टूबर  :  को परम पूज्य संत शिरोमणी श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की असीम कृपा से परम पूज्य भक्त श्री हंसराज जी महाराज (बड़े पिता जी) के आशीर्वाद से पूज्य श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) एवं पूज्य माँ रेखा जी महाराज की अध्यक्षता में

“रामायण-ज्ञान-यज्ञ” का शुभ आरम्भ लुधियाना में हर्षोल्लास से शंख नाद व भक्ति भावना के साथ हुआ।

पूजनीय श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) एवं पूजनीय रेखा जी महाराज (माँ जी) ने परम पूजनीय बड़े पिता जी महाराज जी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य पर श्री स्वामी जी महाराज एवम पूज्य बड़े पिता जी श्री भक्त हंसराज जी महाराज को श्रद्धा सुमन अर्पित किये और सभी साधकों को बधाई दी व उन्हों ने हज़ारों की संख्या में देश विदेश से आये उपस्थित साधको को आशीर्वाद देते हुए सभी के सुख एवं समृद्धि की कामना की।

 

पूज्य माँ महाराज जी ने अमृतवाणी का पाठ करके प्रभु श्री राम का आवाह्न किया और उनसे यज्ञ की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा।

एवम पूज्य बड़े पिता जी महाराज को श्रद्धा सुमन अर्पित किये और सभी साधकों को बधाई दी व उन्हों ने हज़ारों की संख्या में देश विदेश से आये उपस्थित साधको को आशीर्वाद देते हुए सभी के सुख एवं समृद्धि की कामना की। पूज्य माँ जी महाराज ने अमृतवाणी जी का पाठ करके प्रभु श्री राम का आवाह्न किया और उन का आशीर्वाद मांगा।

 

आदरणीय पिता जी महाराज ने कहा कि आज बड़े पूज्य पिता जी महाराज का प्रकाश दिवस है। हर ओर आनंद ही आनंद बरस रहा है। आज बड़ा पर्व का दिन है। पुरानी यादे ताज़ा हो रहीं हैं। जन्म तो बहुत लेते हैं, परंतु उन में कोई जगी हुई आत्मा होती है। उसी जगी हुई आत्मा के जन्म दिन को प्रकाश दिवस कहतें हैं। पिता जी महाराज चाहें आज हमारे बीच सदेह रूप में नहीं हैं, परंतु उन का प्रकाश आज भी हमारा मार्ग दर्शन करता है। उनकी कमी कभी हमें महसूस नहीं होती। स्वामी जी महाराज भी पिता जी को बहुत प्यार करते थे और उन्हें अपना धन्ना भगत कहते थे। राम नाम के प्रचार के लिए पिता जी अपना सब कुछ निछावर करने को सदैव तैयार रहते थे। उन्होंने कहा हम समझते हैं की आचेतन से चेतन की कीमत होती है। जब की इस के विपरीत चेतन से अचेतन की कीमत होती है। इस जग में केवल वही सुखी है, जिसे अपने राम पर पूर्ण विश्वास है। दुनिया में सुख के साधन तो हैं, पर सुख नही है। सुख परमेश्वर के सिमरन में है। जिसने राम नाम में भावना रखी है उस ने सब कुछ पाया है। पूज्य बड़े पिता जी महाराज अपने प्रवचनों में अक्सर कहते थे कि हमें सदैव परमेश्वर और गुरु से केवल आशीर्वाद ही माँगना चाहिए। भगवान का आशीर्वाद हमें सुख में भी और दुःख में भी चाहिए क्योंकि सुख में इंसान नशे में अंधा हो जाता है, उसे रोकने के लिए भगवान के आशीर्वाद की ज़रूरत होती है और दुःख में इसलिए चाहिए क्योंकि दुःख में बड़े से बड़ा बहादुर भी भटक जाता है उसे सहायक की बड़ी जरूरत होती है।

परम आदरणीय श्री कृष्ण जी महाराज ने ब्रह्मलीन पूज्य श्री बड़े पिता जी महाराज की सूक्ष्म उपस्थिति में रामायण ज्ञान यज्ञ, जप यज्ञ और सेवा के यज्ञ का शुभ आरम्भ किया।

 

 

पूज्य महाराज जी ने कहा रामायण जी के पाठ का बहुत माहात्म्य है। यह श्री रामचंद्र जी के दर्शन करने के समान है। रामायण को मंदिर मान कर इस का परायण करना चाहिए। यदि राम जी के दर्शन करने हैं तो रामायण जी के ग्रन्थ के पाठ से बड़ी सरलता से हो सकते हैं।

श्री स्वामी जी महाराज जी ने रामायण जी में हनुमान जी का दर्जा सब से ऊंचा रखा है। क्योंकि उन से बड़ा सेवक कोई नही है।

 

मंगलाचरण के पाठ से परम प्रभु परमात्मा श्री राम, ऋषि, मुनि और संतो के चरणों में वंदन कर उन से आशीर्वाद मांग कर रामायण जी के पाठ का आरंभ किया गया।

 

उपस्थित साधको के संग पूज्य माँ श्री रेखा जी महाराज ने आपने मधुर स्वर में मंगलाचरण के पाठ से श्री रामायण जी का परायण आरम्भ किया।

 

पिता जी महाराज ने कहा जब किसी के पुण्य उदय होते हैं तो ही उसे संत के दर्शन होते हैं। ऐसा ही महर्षि बाल्मीकि जी महाराज को नारद जी के दर्शन हुए और वह उन्हें से राम जी के चरित्र का संक्षेप से वर्णन करते हैं और उनकी जीवनी उन्हें सुनाते हैं। एक दिन उन्हें कविता कला का अनुभव होता है और उन्हें ब्रह्मा जी के दर्शन होते है। वह उन्हें रामायण जी को रचने की प्रेरणा देते हैं। ब्रह्मा जी का प्रोत्साहन पा कर बाल्मीकि जी महाराज राम चरित्र रचने लगते हैं।

 

पूज्य पिता जी महाराज ने उपस्थित साधको को आशीर्वाद देते हुए सभी के सुख और समृद्धि की कामना की और कहा कि सभी व्रतियों के व्रत पूर्ण हों, सभी साधक भ्रम, भय , संशय एवं वहमों से दूर रहें।

 

उन्होने सभी साधकों पूज्य पिता जी महाराज के प्रकाश दिवस और रामायण ज्ञान यज्ञ के शुभ आरंभ की बधाई दी।

 

पूज्य श्री रेखा जी महाराज (माँ जी) द्वारा श्री रामायण जी का गायन अद्धभुत था। उनके द्वारा गाये भजन “आनंद ही आनंद बरस रहा मेरे सतगुरु के दरबार में” सुन सभी साधकों को भाव विभोर हो गए। सभी साधकों ने माँ जी के साथ लयबन्ध हो रामायण जी का परायण किया

 

जप यज्ञ ज्ञान यज्ञ व

सेवा यज्ञ के शुभ आरंभ की सभी को हार्दिक बधाई हो।

*आश्रम के प्रवक्ता ने सूचित किया कि “रामायण-ज्ञान-यज्ञ” में दैनिक सत्संग सुबह 6-30 से 8-15 एवम सायं 4-00 से 6-00 तक हुआ करेगा। यज्ञ की पूर्ण आहुति 12 अक्टूबर शनिवार को प्रातः 8-00 से 10-00 बजे तक की सभा में होगी।

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