ट्रंप सरकार की मंशा, अमेरिका में इस यूनिवर्सिटी में बोलने की आजादी पर पाबंदी लगाना
अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने का अधिकार रद कर दिया। यूनिवर्सिटी ने ट्रंप प्रशासन के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया। यूनिवर्सिटी ने इस कार्रवाई को कानून का ‘स्पष्ट उल्लंघन’ बताया। दुनियाभर में इसे लेकर हलचल है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए जिला जज एलिसन बॉरो ने फिलहाल ट्रंप प्रशासन के फ़ैसले पर रोक लगा दी। इसके पहले अमेरिकी गृह सुरक्षा मंत्री क्रिस्टी नोएम ने कहा कि प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के क़ानून का पालन नहीं कर पाने पर अंतर्राष्ट्रीय छात्र दाखिला कार्यक्रम रद किया।
उन्होंने इसे देश भर की सभी यूनिवर्सिटी-शैक्षणिक संस्थानों के लिए ‘चेतावनी’ बताया। वहीं, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने कहा, हम अपने अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और स्कॉलर्स को दाखिला देने के अपने संकल्प पर कायम हैं। जो 140 से अधिक देशों से यहां आते हैं और विश्वविद्यालय, इस राष्ट्र को समृद्ध बनाते हैं। इस कार्रवाई से हार्वर्ड समुदाय और देश को गंभीर नुक़सान का ख़तरा है। इस मुद्दे पर मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हार्वर्ड अमेरिका की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी है। जिसमें भारत समेत दुनिया भर के हज़ारों छात्र पढ़ाई करते हैं। ऐसे में सवाल है कि ट्रंप के इस फ़ैसले के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने की चाह रखने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं पर क्या असर होगा ? अप्रैल, 2025 में हार्वर्ड को अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय ने मांगों की एक सूची भेजी थी, यूनिवर्सिटी ने उनको अस्वीकार कर दिया था।
दरअसल ट्रंप प्रशासन चाहता है कि अमेरिकी मूल्यों की मुख़ालफ़त करने वाले छात्रों की सूचना सरकार की दी जाए। यूनिवर्सिटी के विभागों के ऑडिट के लिए सरकारी मान्यता प्राप्त बाहरी कंपनी नियुक्त हों। यहूदी विरोधी उत्पीड़न को सबसे अधिक बढ़ावा देने वाले विभागों की सूचना दी जाए। पिछले दो वर्षों में परिसर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान ‘उल्लंघनों’ के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो। विश्वविद्यालय की ‘विविधता, समानता और समावेशन’ की नीतियां-कार्यक्रम ख़त्म किया जाएं। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की फ़ंडिंग रोकने का फ़ैसला किया था। अब अमेरिकी शिक्षा विभाग हार्वर्ड को मिलने वाला 2.2 अरब डॉलर के अनुदान और 6 करोड़ डॉलर के अनुबंधों पर तत्काल रोक लगा रहा है। इसके बाद हार्वर्ड के प्रोफेसरों ने एक मुक़दमा दायर कर आरोप लगाया कि सरकार ग़ैर-क़ानूनी तरीके से अभिव्यक्ति व शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला कर रही है।
इससे पहले व्हाइट हाउस ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से 40 करोड़ डॉलर की संघीय फंडिंग वापस ली थी। ट्रंप प्रशासन ने यूनिवर्सिटी पर यहूदी छात्रों की सुरक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। तब यूनिवर्सिटी ने ट्रंप प्रशासन की कई मांगों पर सहमति जता दी थी। जिसकी छात्रों और शिक्षकों ने आलोचना की थी। अहम सवाल अब यह है कि हॉवर्ड यूनिवर्सिटी की कोर्ट में तो लड़ाई चलती रहेगी, लेकिन जिन्हें कुछ दिनों में अगले सेमेस्टर के लिए एडमिशन लेना है, तो उन छात्रों का क्या होगा ? हो सकता है कि कोर्ट में मामला लंबा खिंचे, ऐसे में हज़ारों छात्रों का भविष्य दांव पर लगेगा।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्र राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। हार्वर्ड में भी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान दिया है। भारत के ही कई दिग्गज राजनेता, उद्यमी व अन्य नामी हस्तियां इस यूनिवर्सिटी से ही पढ़ी हैं। उनको देखकर तमाम भारतीय विद्यार्थी भी वहां पढ़ने के लिए प्रयासरत हैं।
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