पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक के बाद
भारत के वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने महत्वपूर्ण डिफ़ेंस सिस्टम की ख़रीद और उसकी डिलीवरी में हो रही देरी पर चिंता जताई थी। साथ ही घरेलू रक्षा क्षेत्र पर कुछ गंभीर सवाल खड़े किए थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने किसी भी डिफ़ेंस प्रोजेक्ट के समय से पूरा ना होने का ज़िक्र करते घरेलू डिफ़ेंस डील पर कुछ अहम बातें कही थीं। फिलहाल उनका बयान सुर्खियों में बना है।
यहां बता दें कि पिछले महीने 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत के हवाई हमले किए। जिसके बाद दोनों देश आमने-सामने आ गए थे। चार दिन की इस सैन्य झड़प के बाद भारत में रक्षा तैयारियों को तेज़ करने पर चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि एयर चीफ़ मार्शल के बयान को भारत की तैयारियों में और अधिक फुर्ती लाने की ज़रूरत के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। सीआईआई के सालाना बिज़नेस सम्मेलन में एयर चीफ़ मार्शल ने कहा कि हमारा ऐसा एक भी प्रोजेक्ट नहीं है, जो समय पर पूरा हुआ हो। हमें डील पर साइन करते वक़्त ही ये पता होता है कि वो चीज़ें समय पर कभी नहीं आएंगी। हम ऐसा वादा क्यों करें जो पूरा नहीं हो सकता ?
उन्होंने कहा, हम सिर्फ ‘मेक इन इंडिया’ की बात नहीं कर सकते, अब वक़्त ‘डिज़ाइन इन इंडिया’ का भी है। भारत सरकार स्वदेशी हथियार विकसित करने की कोशिश में लगी है। हालांकि अभी भी भारत में हथियारों का बड़ा हिस्सा विदेश से आता है। एयर चीफ़ मार्शल के इस बयान को 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए की डिलीवरी में देरी के संदर्भ में देखा जा रहा है। जिसके लिए हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से साल 2021 में क़रार हुआ था। एचएएल से ही भारतीय वायुसेना ने 70 एचटीटी-40 बेसिक ट्रेनर विमान की ख़रीद पर भी समझौता किया था, जिनकी तैनाती इसी साल सितंबर में तय है।
एयर चीफ़ मार्शल ने कहा, जहां तक एयर पॉवर का सवाल है, हमारा फ़ोकस इस बात पर है कि हमारे पास क्षमता और सामर्थ्य हो। हम सिर्फ भारत में उत्पादन के बारे में बात नहीं कर सकते, हमें भारत में ही डिज़ाइनिंग और डेवलपमेंट का काम शुरू करने ज़रूरत है। पहले आईएएफ़ बाहरी चुनौतियों पर अधिक ध्यान दे रही थी, लेकिन मौजूदा हालात ने उसे यह बात महसूस कराई है कि आत्मनिर्भरता ही एकमात्र समाधान है।
रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी के मुताबिक रक्षा मंत्रालय में जो सिस्टम चल रहा है, उससे सैन्य बलों में भी हताशा है, क्योंकि समय की कोई पाबंदी नहीं है। भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के क़रीब 42 स्क्वाड्रन मंज़ूर हैं, लेकिन अभी उसके पास 30 स्क्वाड्रन हैं। इनमें दो से तीन स्क्वाड्रन अगले एक से दो साल में रिटायर होने वाली हैं। भारतीय वायुसेना ने 2018-19 में 114 लड़ाकू विमानों का प्रस्ताव दिया था, जिस पर आज तक कोई प्रगति नहीं हुई है। एयर चीफ़ मार्शल का दर्द इससे समझा जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद जो कुछ हुआ उसमें भारतीय वायुसेना की अहम भूमिका रही है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में ये दावा किया गया कि भारत के कुछ एयरक्राफ़्ट गिरे हैं, जबकि भारत ने इस पर कुछ स्पष्ट नहीं कहा।
डिफ़ेंस ख़रीद में देरी का एक और उदाहरण रफ़ाल है। जिसके कॉन्ट्रैक्ट पर बात शुरू हुई 2007-08 में और उसे हरी झंडी मिली 2016 में जब पीएम मोदी फ़्रांस के दौरे पर गए। फिर इसकी डिलीवरी 2018 से शुरू हुई। इसी तरह तेजस लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ़्ट जो आज हमारे सामने है, इस पर बातचीत 1981 में शुरू हुई थी। किसी भी चीज़ का हम इंजन नहीं बना पाए। हेलीकॉप्टर के इंजन की तकनीक फ़्रांस से ली है और उसके लाइसेंस से निर्माण हो रहा है। अर्जुन टैंक का इंजन जर्मनी है, तेजस का इंजन अमेरिका से आता है। छोटे से छोटा इंजन भी इम्पोर्टेड है। स्वदेशी फ़ाइटर जेट विकसित करने में यह भी एक बड़ी बाधा है।
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