मुद्दे की बात : भारत-कनाडा के रिश्तों की खटास जी-7 से होगी कम ?

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सदस्य ना होकर भी सम्मेलन में न्यौता मिलना भारत के लिए बड़ा अवसर

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के न्योते पर पीएम नरेंद्र मोदी वहां जा रहे हैं। वह अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में इसी महीने होने वाले जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। हालांकि भारत इसका सदस्य नहीं है। इसमें अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन, जापान, इटली, जर्मनी व कनाडा के शीर्ष नेताओं की भागीदारी होगी। जी-7 के मेज़बान-देश इस समूह से इतर देशों को भी न्योता देते हैं।

यहां काबिलेजिक्र है कि बीते वक्त में कनाडा-भारत के रिश्तों में खटास आई थी। अब तमाम देशों, मीडिया की निगाह इसी पर है कि क्या दोनों के रिश्तों की खटास जी-7 से कम होगी ? क़रीब 10 साल बाद पीएम मोदी कनाडा की यात्रा करेंगे। तब स्टीफ़न हार्पर कनाडा के पीएम थे। साल 2023 में ख़ालिस्तान समर्थक सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से ही भारत-कनाडा के संबंध ख़राब दौर में हैं। ऐसे में इस न्योते को दोनों देशो के पारस्परिक संबंधों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव कहती हैं, यह एक सही शुरुआत है, भारत को बुलाना हर तरफ़ से सही है। हम जी-7 के सदस्य नहीं हैं, लेकिन अगर ये बुलावा नहीं आता तो इसका सिग्नल ग़लत जाता। इससे दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा मिल रही है। ट्रूडो ने अपने घरेलू लाभ के लिए संबंधों को ख़राब किया और उसको अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।

वहीं, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफे़सर पुष्पेश पंत बताते हैं, अमेरिका जिस तरह से कनाडा के साथ व्यवहार कर रहा है, ऐसे में भारत के लिए अवसर हर लिहाज़ से बेहतर है। भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री कार्यकाल में कनाडा के साथ भारत के संबंध बहुत ही ख़राब हो गए थे। इसे ट्रूडो की नासमझी कहें या अनुभवहीनता कि उन्होंने भारत जैसे बड़े देश से संबंध बिगाड़ लिए थे। उन्होंने अपनी अंदरूनी राजनीति और फ़ंडिंग के चक्कर में भारत को दूर कर दिया।

खैर, अब जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को लेकर कनाडा ने अपना रुख़ स्पष्ट किया है। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, जी-7 के सहयोगियों के साथ हुई चर्चा में ये सहमति बनी कि एनर्जी, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, अहम खनिज जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण देशों को आमंत्रित करना ज़रूरी है। माहिरों के मुताबिक कार्नी एक बात बेहतर तरीके़ से जानते हैं कि भारत के बिना दुनिया में किसी बड़ी आर्थिक योजना को आकार नहीं दिया जा सकता। वह एकदम से सब कुछ नहीं बदल देंगे, वह भी घरेलू राजनीति को देखते हुए क़दम उठाएंगे। हालांकि भारत के लिहाज़ से भी यह बेहतर अवसर है। हम भी धीरे-धीरे संबंधों को बढ़ाते हुए बातचीत का क्रम स्थापित करेंगे। कनाडा में लगभग 30 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जिससे ये प्रवासी भारतीयों के लिए एक बड़ा ठिकाना बन गया है। आर्थिक संबंधों की बात करें, तो कनाडा के पेंशन फ़ंड्स ने भारत में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इस फ़ंड्स से भारत में लगभग 75 अरब कैनेडियन डॉलर का निवेश किया गया है। भारत में 600 से अधिक कनाडा की कंपनियां काम कर रही हैं। जबकि 1,000 से अधिक कंपनियां भारतीय बाज़ारों में व्यापार करती हैं।

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