बड़ा सवाल, तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन और पीएम मोदी में क्यों देखी जाती है समानता
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान की अघोषित-जंग में एक शख्स का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं। दोनों मुल्कों के बीच भले ही सीजफायर हो गया, लेकिन पाकिस्तान के हक में खड़े तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन का नाम फिलहाल तक चर्चा में है। जानकार सवाल कर रहे हैं कि आखिर कहां तक जाएगा तुर्की-भारत के बीच जारी तनाव ?
गौरतलब है कि पाकिस्तान ने बाकायदा भारत के ख़िलाफ़ मदद के लिए अर्दोआन को शुक्रिया अदा किया। दूसरी तरफ़, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के लिए पिछले दो हफ़्ते चुनौती भरे रहे हैं। पहलगाम में हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की थी और बाद में दोनों देशों में वार-पलटवार होते रहे। जब युद्धविराम की घोषणा हुई तो इसका श्रेय अमेरिका ने लिया और ऐसा संदेश गया कि भारत को अमेरिका निर्देशित कर रहा है। भारत और पाकिस्तान के संघर्ष में तुर्की सीधे तौर पर पाकिस्तान के साथ खड़ा था। भारत में सोशल मीडिया पर तुर्की को लेकर तीखी बहस हो रही है। बीबीसी और रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में तुर्की को लेकर कुछ फ़ैसले लिए गए, हालांकि अर्दोआन को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। दो दिन पहले फिर अर्दोआन ने कहा, हम पाकिस्तान के लोगों के साथ खड़े हैं। भाई शहबाज़ शरीफ़ को मैंने फ़ोन कर कहा था कि हम साथ हैं। हम आगे भी खड़े रहेंगे। जेएनयू के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा के मुताबिक अर्दोआन का आत्मविश्वास कई कारणों से बढ़ा। उन्होंने सीरिया व लीबिया में मनमाफिक सरकारें बनवा लीं। अज़रबैजान को आर्मीनिया के ख़िलाफ़ जीत दिलाई। ट्रंप ने भी सीरिया सरकार को मान्यता दे दी। ऐसे में अर्दोआन को लगता है कि पश्चिम एशिया की तरह वह दक्षिण एशिया में भी मनमानी कर सकते हैं। वह पाकिस्तान को जैसे समर्थन दे रहे हैं, ऐसे में उसकी भारत से तनातनी और बढ़ेगी। हालांकि उनको समझना होगा कि दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया की तरह नहीं है। अर्दोआन दक्षिण एशिया में इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान में ख़ुद को प्रासंगिक बना सकते हैं, लेकिन और कहीं उनकी दाल नहीं गलेगी। भारत को चाहिए कि तुर्की को लेकर राजनयिक रूप से और सक्रिय हो जाए। जैसे आर्मीनिया और ग्रीस के साथ संबंध गहरा करे, साइप्रस को मदद बढ़ाए और सांस्कृतिक रूप से भी मुक़ाबला करे। वैसे भी तुर्की कभी भारत के साथ नहीं रहा, लेकिन अब अर्दोआन इस्लाम के नाम पर भारत विरोधी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। मोदी और अर्दोआन के बीच अक्सर तुलना होती है। दोनों की राजनीति व व्यक्तित्व के विश्लेषण में कई तरह की समानता खोजी जाती है।
अर्दोआन 1994 में इस्तांबुल के मेयर से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे थे। मोदी भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने 2020 में राम मंदिर का शिलान्यास करते हुए कहा था कि सदियों का इंतज़ार ख़त्म हुआ। जुलाई, 2020 में जब तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने इस्तांबुल में हागिया सोफ़िया को म्यूज़ियम से मस्जिद में बदला तो कहा था, यह हमारे युवाओं का एक बड़ा सपना था जो अब पूरा हो गया है। मोदी की पहचान हिन्दू राष्ट्रवादी की है और अर्दोआन की इस्लामी नेता की। दोनों नेता सभ्यताओं की जंग में मज़बूत प्रतिद्वंद्वी नज़र आते हैं।
दोनों उस राजनीति के चैंपियन माने जाते हैं, जिसमें धर्म अनिवार्य है। दोनों धर्मनिरपेक्ष देश का नेतृत्व करते हैं, लेकिन दोनों चाहते हैं कि राष्ट्र और राज्य में धर्म की अहम जगह हो। अर्दोआन ने तुर्की का नाम बदलकर तुर्किये कर दिया और बीजेपी नेता भी इंडिया का नाम भारत करना चाहते हैं। अर्दोआन और मोदी कमोबेश एक जैसे अंतराल के बाद सर्वोच्च पदों तक पहुंचे। कांग्रेस के सीनियर नेता शशि थरूर भले अभी मोदी सरकार की नीतियों का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन 2018 में उन्होंने ही प्रोजेक्ट सिंडिकेट में नरेंद्र मोदी और अर्दोआन में समानता पर आर्टिकल लिखा था। उनके मुताबिक मोदी और अर्दोआन दोनों ही ग़रीब पृष्ठभूमि से निकले। अर्दोआन नींबू शर्बत-पेस्ट्री बेचते थे। मोदी भी पिता और भाई की चाय दुकान चलाने में मदद करते थे। दोनों सेल्फ मेड हैं, ऊर्जावान हैं और फ़िज़िकली फ़िट हैं। नेता बनने से पहले अर्दोआन पेशेवर फ़ुटबॉलर थे तो दूसरी तरफ़ मोदी 56 इंच के सीने पर अभिमान करते हैं। अर्दोआन की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी और मोदी की बीजेपी दोनों धार्मिक भावनाएं प्रोत्साहित करती है। वैसे आधा तुर्की अर्दोआन से नफ़रत करता है, पीएम मोदी के साथ भी ऐसा ही है। हालांकि तुर्की और भारत में बहुत अंतर है। तुर्की में 98 प्रतिशत मुसलमान हैं और भारत में केवल 80 प्रतिशत हिन्दू हैं। तुर्की कमोबेश एक विकसित देश है, जबकि भारत को इसके लिए लंबा सफ़र तय करना है। भारत की तरह तुर्की कभी उपनिवेश नहीं रहा और ना ही धर्म के आधार पर बंटा। जबकि भारत में इसी विभाजन से पाकिस्तान बना, अर्दोआन उसके ही साथ खड़े हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स के इंटरनेशनल ओपिनियन एडिटर रहे बशारत पीर ने अर्दोआन और मोदी की राजनीतिक तुलना करते हुए 2017 में एक किताब लिखी थी। उनके मुताबिक तुर्की और भारत बहु-सांस्कृतिक लोकतंत्र रहे हैं और वहां दक्षिणपंथी धार्मिक राष्ट्रवादी अर्दोआन और मोदी कैसे कामयाब रहे। वहीं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अलग तरह की धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ाया, जो धर्म के ख़िलाफ़ नहीं थी। तुर्की में मुस्तफ़ा कमाल पाशा और भारत में नेहरू का आइडिया दशकों तक प्रभुत्व में रहा। हालांकि दोनों देशों में उनके तरीक़ों का विरोध किया गया। तुर्की में इस्लामिस्ट तो भारत में हिन्दू राष्ट्रवादी विरोध में खड़े हुए। अब अर्दोआन के इस्लामिक व मोदी के हिन्दू राष्ट्रवाद में उन लोगों के लिए बहुत कम जगह है, जो उनकी आस्था से नहीं जुड़े हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी ने मध्य-पूर्व और यूरोप के कई देशों का दौरा किया, लेकिन कभी तुर्की नहीं गए। वह 2019 में तुर्की जाने वाले थे, लेकिन कश्मीर पर अर्दोआन के विवादित बयान से दौरा टला था। अर्दोआन का आख़िरी द्विपक्षीय भारत दौरे में भी कश्मीर पर उनकी टिप्पणी पर विवाद हुआ था। तुर्की के पीएम बनने के बाद उन्होंने कहा था, मैं कुछ भी होने से पहले एक मुसलमान हूं।
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