भारतीयों के लिए अब यूरोपीय संघ के 29 देशों के वीजा नियम बेहद आसान हुए
विज़न 2047 की नींव हमारी बौद्धिक,शारीरिक प्रतिभाओं को विदेशों में पलायन से रोकने सख़्त नियम बनाना ज़रूरी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर यह जग प्रसिद्ध है कि भारत मानवीय, बौद्धिक, शारीरिक प्रतिभाओं की खान है। इसके सटीक प्रमाण के रूप में हम देख सकते हैं कि यूरोपीय संघ के अनेक देशों में बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ याबड़े-बड़े अधिकारी मूल भारतीय हैं,इस तरह अगर हम 54 देश के अफ्रीकी यूनियन 53 देश के इस्लामिक सहयोग संगठन में देखे तो भारतीय प्रतिभावान श्रम हमें अधिक देखेगा इस तरह हम अगर उच्चप्रतिभावान भारतीय डॉक्टरों इंजीनियरों को देखें तो वह भी अमेरिका जैसे विकसित देश में बहुत अधिक हैं जिसका प्रमाण मैं अपने रिश्तेदारों के दे सकता हूं कि बहुत टैलेंट इंजीनियर आज अमेरिकी कंपनी में बड़ी पोस्ट पर है,जो पूरा परिवार अमेरिकी नागरिक बन चुका है। इस विषय पर चर्चा आज हम इसलिए कर रहे हैं, चूंकि दिनांक 22 अप्रैल 2024 को यूरोपीय संघ ने अपने 29 सदस्य देशों के वीजा नियमों को बेहद आसान कर दिया है जो खासकर भारतीयों के लिए बहुत सुविधाप्रद व आसान है। खास करके मल्टी सेलिंग वीजायूरोपीय संघ ने हाल ही में भारतीय नागरिकों के लिए विशेष रूप से तैयार एक अपडेटेड वीज़ा सिस्टम शुरू किया है। यह नया सिस्टम भारतीय नागरिकों के लिए है।यूरोपीय संघ ने इस बात की जानकारी दी है, यूरोपीय संघ की तरफ से जारी बयान में कहा गया है,जो भारतीय कम समय के लिए शेंगेन वीजा के लिए अप्लाई करते हैं, उन्हें इस नये वीजा नियम के तहत पांच सालों के लिए वीजा मिल सकता है। यह उन लोगों पर लागू होगा जो पहले से ही कई देशों में जा चुके हैं।कुल मिलाकर इसमें भारतीय प्रतिभावान आकर्षित होंगे और अपनी पलायन की हसरत को अंजाम देने की भरपूर कोशिश कर सकते हैं।अमेरिका की एक एक उद्योग एजेंसी अनुसंधान सेवा कर्स की वित्तीय वर्ष 2022 के लिए अमेरिका की नागरिक नीति पर 15 अप्रैल 2024 को नवीनतम रिपोर्ट जारी की जिसमें वर्ष 2022 में 959380 व्यक्ति अमेरिकी नागरिक बने हैं,जिसमें भारत का स्थान दूसरे नंबर पर है जिसके 65960 लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिली है।मेरा मानना है कि इसमें अनेक प्रतिभाएं ऐसी होगी, जो हमारे विजन 2047 की नींव का एक हिस्सा हो सकती थी। चूंकि यूरोपीय संघ के 29 देशों के वीजा नियम बेहद आसान हुए हैं,जो खासकर भारतीयों के पक्ष में है,इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, विजन 2047 की नीव हमारी बौद्धिक शारीरिक प्रतिभाओं को विदेशों में पलायन से रोकने सख़्त नियम बनाने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम यूरोपीय संघ द्वारा अपने वीजा नियमों में बदलाव से भारतीयों के लिए वीजा बेहद आसान होने की करें तो, यूरोपीय आयोग ने भारतीय नागरिकों के लिए मौजूदा नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत हर्वे डेल्फिन ने नई वीजा व्यवस्था को दोनों पक्षों के बीच लोगों से लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने की दिशा में एक और कदम बताया है। वीजा मानदंडों में यह बदलाव यूरोपीय संघ और भारत के बीच मजबूत संबंधों को देखते हुए लिया गया है।वीजा जारी करने पर विशिष्ट नियम अपनाए,यूरोपीय संघ ने कहा, 18 अप्रैल को यूरोपीय आयोग ने भारतीय नागरिकों को मल्टीपल एंट्री वीजा जारी करने पर विशिष्ट नियम अपनाए हैं। ये नियम वर्तमान वीजा के मानकों की तुलना में अधिक अनुकूल हैं। तीन वर्षों के भीतर दो वीजा प्राप्त करने और उनका उपयोग करने वाले भारतीय नागरिकों को अब दो साल के लिए मल्टीपल एंट्री शेंगेन वीजा जारी किया जाएगा।यह 90 दिनों के लिए जारी किया गया एक शॉर्ट स्टे यानी कम अवधि वाला वीजा होता है और इससे किसी को भी यूरोपीय देशों में यात्रा करने की अनुमति मिल जाती है। पहले भारत के लोगों को तीन साल में दो बार वीजा लेना पड़ता था, लेकिन हाल ही में लागू हुए नियमों के मुताबिक भारतीयों को मल्टीपल एंट्री शेंगेन वीजा मिलेगा, इससे वीजा पर आने वाला खर्च कम होगा।नए नियमों के मुताबिक, भारत के नागरिक अब लॉन्ग-टर्म, मल्टी एंट्री शेंगेन वीजा के लिए एलिजिबल होंगे और वह लंबी वैलेडिटी के साथ दो साल के वीजा के लिए, आपके पास पहले तीन साल में कानूनन हासिल किए गए दो वीजा होने चाहिए, इसके बाद, अगर हमको पासपोर्ट में सही वैलेडिटी बाकी है तो हमको पांच-साल का वीजा मिल सकता है। इन वीज़ा की वैधता अवधि के दौरान, धारकों को वीज़ा-फ्री नागरिकों के बराबर ट्रेवल के अधिकार दिए जाते हैं, इसका मतलब यह है कि वे अलग-अलग वीजा की जरूरत के बिना शेंगेन देशों में कई बार आ-जा सकते हैं। इस व्यवस्था को लागू करने का उद्देश्य यूरोपीय संघ और भारत के बीच माइग्रेशन पॉलिसी पर व्यापक सहयोग को बढ़ावा देना है। शेंगेन वीजा धारक को शेंगेन एरिया में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने की अनुमति देता है, जिसमें 29 यूरोपीय देश शामिल हैं, जिनमें 25 यूरोपीय संघ के सदस्य देश और चार गैर-ईयू देश (आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड) शामिल हैं। ये वीज़ा किसी भी 180-दिन की अवधि के भीतर 90 दिनों तक के शॉर्ट स्टे की अनुमति देते हैं।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शेंगेन वीज़ा किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए नहीं है, इसका उपयोग पर्यटन, व्यवसाय या दोस्तों और परिवार से मिलने के लिए किया जा सकता है।हालांकि, इस वीजा से शेंगेन एरिया के भीतर काम करने का अधिकार नहीं मिलता है, यह वीज़ा व्यवस्था यूरोप के भीतर यात्रा को सरल बनाती है, क्योंकि यात्रियों को हर एक देश के लिए अलग-अलग वीज़ा लेने के बजाय, शेंगेन क्षेत्र के भीतर कई देशों की यात्रा के लिए सिर्फ एक वीज़ा की जरूरत होती है।
साथियों बात अगर हम इस वीजा आसान स्थितिकोभारतीय प्रतिभा पलायन के दृष्टिकोण एंगिल से देखें तो, प्रतिभा पलायन एक ऐसी घटना है जहां अत्यधिक कुशल और प्रतिभाशाली व्यक्ति बेहतर अवसरों और दूसरे देश में उच्च जीवन स्तर की तलाश के लिए अपना देश छोड़ देते हैं। इसके परिणामस्वरूप घरेलू देश के लिए मानव पूंजी की हानि हो सकती है और आर्थिक वृद्धि और विकास पर असर पड़ सकता है, सबसे प्रतिभाशाली और सर्वश्रेष्ठ भारतीयों को यूके में सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग या अन्य व्यवसाय स्थापित करने का अवसर प्रदान करने की कल्पना करें। यदि उनमें से केवल एक अंश ही आता है तो एक संभावित अरबपति 10, हज़ार कम कुशल श्रमिकों की तुलना में अधिक नौकरियां और कर प्राप्तियां उत्पन्न कर सकता है।
साथियों बात अगर हम ब्रेन ड्रोन की करें तो, यह शब्द समाज के अत्यधिक बौद्धिक लोगों जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और अन्य प्रशिक्षित लोगों के बेहतर जीवन की तलाश में विकसित देशों में बड़े पैमाने पर प्रवास के लिए गढ़ा गया है। प्रतिभा पलायन भारत और कई अन्य विकासशील देशों के सामने एक बड़ी समस्या है, जो इन लोगों को प्रशिक्षित करने में अपने संसाधनों की बड़ी मात्रा खर्च करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं मिलता है क्योंकि ये बुद्धिजीवी विकसित देशों में अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं।प्रतिभा पलायन के कई कारण हैं, और सबसे महत्वपूर्ण है किसी देश द्वारा अपने लोगों की प्रतिभा को पहचानने में असमर्थता। भारत में हर साल सैकड़ों इंजीनियर और डॉक्टर स्नातक होते हैं, जिन्हें ज्यादातर बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है या उन्हें अन्य क्षेत्रों में काम करने के लिए अपने संबंधित क्षेत्रों को छोड़ना पड़ता है, ये कर्मी फिर विदेशों में नौकरियों की तलाश करते हैं जहां उन्हें आकर्षक प्रस्ताव दिए जाते हैं। साथ ही, विकासशील देशों में जीवन की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इन लोगों को विकसित देशों में बेहतर शिक्षा सुविधाएं, स्वास्थ्य सेवाएं आदि मिल सकती हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश छोड़ने वाले कई स्नातक कभी देश में वापस नहीं आते क्योंकि उन्हें ज्यादातर विकसित देशों में अच्छी नौकरियां मिल जाती हैं। विकासशील देशों में ज्यादातर उन्नत अनुसंधान और विकास के लिए सुविधाओं का अभाव है और इसके कारण अत्यधिक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक देश छोड़कर चले जाते हैं।गूगल या माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ, जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता, ब्रेन ड्रेन के कारण हमारे देश को होने वाले नुकसान के उदाहरण हैं, जो अगर देश में काम कर रहे होते और सेवा कर रहे होते तो देश के विकास में बहुत योगदान दे सकते थे। वास्तव में, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से सबसे अधिक मस्तिष्क लाभ प्राप्त करने वाला देश रहा है।इस स्थिति से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम प्रतिभाओं की पहचान करना और इन लोगों को बेहतर बुनियादी ढांचे और सेवाओं का प्रावधान करना होगा। सरकार को स्कूली पाठ्यक्रम में इसे शामिल करके अपनी मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता की भावना पैदा करके बच्चों के युवा मन में राष्ट्र की सेवा करने का विचार पैदा करना चाहिए, जिससे उन्हें युवा होने पर राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका का एहसास हो सके।अंततः यह कहा जा सकता है कि प्रतिभा पलायन की समस्या का समाधान देश की जनता और सरकार के संयुक्त प्रयासों से ही किया जा सकता है।
साथियों बात अगर हम वित्त वर्ष 2022 में भारतीयों के अमेरिका पलायन यानें नागरिकता प्रदान करने की करें तो वर्ष 2022 में कम से कम 65,960 भारतीय आधिकारिक तौर पर अमेरिकी नागरिक बन गए और इसी के साथ जिन देशो के लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिली है, उनकी संख्या के मामले में भारत मेक्सिको के बाद दूसरे नंबर पर पहुंच गया।अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अमेरिकी सामुदायिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में विदेशी मूल के अनुमानित चार करोड़ 60 लाख लोग अमेरिका में रहे जोअमेरिका की कुल 33 करोड़ 33 लाख आबादी का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा है।स्वतंत्र कांग्रेशनल अनुसंधान सेवा (सीआरएस) की वित्त वर्ष 2022 के लिए यूएस नेचुरलाइजेशन पॉलिसी (अमेरिकी नागरिकता नीति) पर 15 अप्रैल की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में 9,69,380 व्यक्ति अमेरिकी नागरिक बने।रिपोर्ट में कहा गया,अमेरिकी नागरिकता पाने वाले लोगों में मेक्सिको में पैदा हुए लोगों की संख्या सबसे अधिक रही। इसके बाद भारत, फिलीपीन,क्यूबा और डोमिनिकन गणराज्य के लोगों को सर्वाधिक संख्या में अमेरिकी नागरिकता मिली। सीआरएस ने बताया कि 2022 में मेक्सिको के 1,28,878 नागरिक अमेरिकी नागरिक बने। उनके बाद भारत (65,960), फिलीपीन (53,413), क्यूबा (46,913), डोमिनिकन गणराज्य (34,525),वियतनाम (33,246) और चीन (27,038) के लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिली।उसने बताया कि 2023 तक विदेशी मूल के अमेरिकी नागरिकों में भारत के लोगों की संख्या 2,831,330 थी जो मेक्सिको के (10,638,429) के बाद दूसरी सर्वाधिक संख्या है। इसके बाद इस सूची में चीन (2,225,447) का नंबर है। सीआरएस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका में रहने वाले भारत में जन्मे लगभग 42 प्रतिशत विदेशी नागरिक वर्तमान में अमेरिकी नागरिक बनने के लिए अयोग्य हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत से विदेशों में बौद्धिक शारीरिक प्रतिभा पलायन को सख़्ती से रेखांकित करना समय की मांग।भारतीयों के लिए अब यूरोपीय संघ के 29 देशों के वीजा नियम बेहद आसान हुए।विज़न 2047 की नींव हमारी बौद्धिक शारीरिक प्रतिभाओं को विदेशों में पलायन से रोकने सख़्त नियम बनाना ज़रूरी है।
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*