जोन-ए में एसडीओ की दबंगई के आगे कमिश्नर भी साबित हो रहे बोने !
राजदीप सिंह सैनी
लुधियाना 27 नवंबर। लुधियाना के नगर निगम में अब बड़े अधिकारियों की राह पर एसडीओ लेवल के अधिकारी भी चलने शुरु हो गए चुके हैं। कहीं इन अधिकारियों द्वारा उच्च अधिकारियों तक की बात को अनसुना कर दिया जा रहा है, तो कही जमकर घोटाले किए जा रहे हैं। नगर निगम के दो एसडीओ के नए मामले सामने आए हैं। पहले मामले में जोन-ए में तैनात एक एसडीओ की और से जमकर धांधली की जा रही है। हालात यह है कि उक्त अधिकारी की दबंगई इतनी ज्यादा है कि अब निगम कमिश्नर भी उनके आगे बोने लगने लग गए हैं। दरअसल, निगम कमिश्नर द्वारा उक्त एसडीओ को निगम जोन-ए ऑफिस में महिला शौचालय बनाने के ऑर्डर किए थे। लेकिन आज तक शौचालय बनना तो दूर उनका दोबारा जिक्र तक नहीं किया गया। जिससे पता चलता है कि उच्च अधिकारियों के आदेशों की भी एसडीओ को प्रवाह नहीं है। बता दें कि निगम जोन-ए के किसी भी फ्लौर पर महिला शौचालय नहीं है। अब अगर बनाने के आदेश हुए तो एसडीओ ने उन आदेशों को भी दरकिनार कर दिया। चर्चाएं है कि निगम ऑफिस में एक ही शौचालय को सभी द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।
महिलाओं को शौचालय के कारण आती दिक्कतें
जानकारी के अनुसार निगम जोन-ए में एक भी महिला शौचालय नहीं है। जिस कारण महिलाओं को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जबकि सिर्फ नगर निगम में ही 60 से 70 महिलाएं नौकरी करती है। इसके अलावा वहां काम कराने के लिए भी महिलाएं आती है। इसके बावजूद वहां महिला शौचालय ही नहीं है।
पीएम-सीएम बनवा रहे शौचालय, अफसरों को फिक्र नहीं
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम भगवंत मान की और से शौचालय बनाने को पहल दी जाती है, ताकि स्वच्छता बनी रहे। खासकर महिलाओं को इसकी सुविधा हो सके। लेकिन दूसरी तरफ सरकारी अधिकारियों को इस बात का फिक्र ही नहीं है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि कमिश्नर द्वारा ऑर्डर करने के बावजूद एसडीओ उन आदेशों को मानने के लिए तैयार नहीं है।
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जोन-डी में एक्सियन-एसडीओ लेवल के अधिकारी द्वारा बिलों में हेरफेर कर की जा रही कमाई
लुधियाना 27 नवंबर। एसई संजय कंवर को टेंडर अलॉट करने की एवज में 10 प्रतिशत कमिशन मांगने के आरोप में विजिलेंस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में संजय कंवर पर कोई सख्त एक्शन न होते देख अब बाकी अधिकारियों के भी हौंसले बुलंद होने शुरु हो चुके हैं। चर्चा है कि जोन-डी की बीएंडआर ब्रांच में कई अफसरों की चांदी बनी हुई है। दरअसल, एक्सियन व एसडीओ लेवल के अधिकारियों द्वारा बिल्डिंग और सड़कों के निर्माण के बिलों में ठेकेदारों के साथ मिलकर हेरफेर करके जमकर कमाई की जा रही है। जिसकी एवज में हर महीने लाखों रुपए जेब में डालने की चर्चाएं हैं। हैरानी की बात तो यह है कि सरेआम सरकारी खजाने को चूना लगाने के बावजूद उच्च अधिकारी इस पर ध्यान ही नहीं दे पा रहे।
ऐसे है सही बिलिंग का सही प्रोसेस
दरअसल किसी भी बिल्डिंग व सड़क को ठेके पर देने के बाद उसकी पूरे तरीके से मेजरमेंट होती है। जिसमें सबसे पहले वर्क ऑर्डर होती है। फिर ठेकेदार और एक्सियन में एग्रीमेंट होकर काम शुरु होगा। फिर थोड़ा काम करने के बाद रनिंग बिल तैयार किया जाता है, जिसमें ठेकेदार द्वारा किए कुछ काम की पेमेंट निगम द्वारा की जाती है। इसके लिए भी नॉर्मल प्रोसेस के मुताबिक एक्सियन व एसडीओ द्वारा कार्य स्थल पर जाकर मेजरमेंट की जाती है। जिसकी बकायदा मेजरमेंट बुक में डिटेल एंट्री की जाती है, यानि कि मौके पर क्या बना, कितना बना और क्या क्या इस्तेमाल किया गया है। फिर उस मुताबिक बिल बनाया जाता है। जिस पर एसडीओ, एक्सियन, एसई, एडिशनल कमिश्नर, कमिश्नर और फिर अकाउंट्स विभाग के हस्ताक्षर होते हैं। फिर उसे ऑडिट विभाग पास करता है। जिसके बाद पेमेंट होती है।
अधिकारी ऐसे कर रहे खेल
दरअसल, बीएंडआर विभाग के एक्सियन, एसडीओ और ठेकेदार द्वारा मिलकर इन बिलों में बड़ा खेल किया जा रहा है। जिसमें अधिकारी मेजरमेंट बुक में एंट्री किए बिना सीधा बिल तैयार क देते हैं। जिसमें काम 10 लाख का हुआ तो बिल 20 लाख का बना दिया जाता है। फिर उक्त बिल को एडिशनल कमिश्नर व कमिश्नर के पास अप्रूवल के लिए भेजा जाता है। अगर अधिकारियों द्वारा निर्माण कार्य में पूछताछ कर ली तो ठीक है, नहीं तो अफसरों पर यकीन करके और उनके द्वारा बनाई गोलमोल कहानी में आकर वह बिल पास कर देते हैं। कमिश्नर से बिल पास होते ही उसी के मुताबिक मेजरमेंट बुक में मनमर्जी से एंट्री डाल दी जाती है। जिसके बाद बिल पास करवाकर एसडीओ और एक्सियन लेवल के अधिकारी मोटी कमिशन ले लेते हैं। जबकि कई उच्च अधिकारियों की भी मिलीभगत की चर्चाएं हैं।
गलत एस्टीमेट तैयार कर टेंडर हो रहे अलॉट
चर्चा है कि ठेकेदारों की और से अफसरों के साथ मिलकर गलत एस्टीमेट तैयार करके टेंडर अलॉट करवाए जा रहे हैं। दरअसल, अब टेंडर 34 से 47 प्रतिशत लैस पर जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक ठेकेदार को 53 प्रतिशत पर टेंडर मिला। फिर उसमें 2 प्रतिशत इनकम टैक्स, 2 प्रतिशत जीएसटी, 1 प्रतिशत लेबर सेस और चर्चा है कि 12 प्रतिशत कमिशन जाती है। यानि कि 53 में से 40 प्रतिशत ठेकेदार के पास बचा। फिर उसमें कई लीडरों का 5-6 प्रतिशत टैक्स लगता है। यानि कि ठेकेदार के पास 35 प्रतिशत बचा। इस टेंडर को लेकर भी ठेकेदार कमाई कर लेते हैं, तभी तो हर ठेकेदार एक से बढ़कर एक टेंडर डालता है। यानि कि या तो काम में गड़बड़ियां की जा रही है या तो असलियत में काम 25-30 प्रतिशत का होता है। लेकिन जानबूझकर इसे अफसर और ठेकेदार बढ़ा देते हैं।
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