किसके साथ ताक़तवर देश, पाकिस्तान या भारत ?

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शीत-युद्ध के बाद दुनिया के देशों का तेजी से बदला नजरिया

अब भारत-पाकिस्तान के बीच अघोषित-जंग जारी है। ऐसे में दोनों मुल्कों के बीच पुराने संबंधों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के बीच बीबीसी ने भी इस मामले में ताजा रिपोर्ट पेश की। जिसके मुताबिक पाकिस्तान ने भारत से 1965 और 1971 की जंग तब लड़ी थी, जब शीत युद्ध का ज़माना था। शीत युद्ध में पाकिस्तान अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबंधन का हिस्सा था। शीत युद्ध के दौरान ही 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत संघ ने हमला किया था।

तब सोवियत संघ, अफ़ग़ानिस्तान में कम्युनिस्ट सरकार और इस्लामी कट्टरपंथियों को सत्ता से दूर रखना चाहता था। दूसरी तरफ़ अमेरिका चाहता था, जहां कम्युनिस्ट सरकारें हैं, उन्हें कमज़ोर किया जाए। अमेरिका, अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ को हराने के लिए पाकिस्तान की मदद ले रहा था। बदले में पाकिस्तान को अमेरिका से आर्थिक-सैन्य मदद मिलती रही। अमेरिका की पाकिस्तान से क़रीबी उसकी रणनीतिक ज़रूरत थी। अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान और अमेरिका ने जिन कट्टरपंथियों को आगे बढ़ाया, वही उनके लिए चुनौती बने, जो आज तक कायम है। 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था। चीनी हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, लेकिन उसका आकलन ग़लत निकला। तब पाकिस्तान को लगा था कि चीन से जंग के कारण भारत का मनोबल बहुत गिरा हुआ है, ऐसे में उसे हरा सकता है। पाकिस्तान मक़सद हासिल नहीं कर सका, जंग में अमेरिका ने उसकी सैन्य मदद नहीं की, लेकिन भारत का भी समर्थन नहीं किया।

फिर 1971 की जंग में अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की। कहते हैं कि अमेरिका ने ऐसा सोवियत यूनियन को संदेश देने के लिए किया था। हालांकि अमेरिका ने सीधे हस्तक्षेप के लिए कोई आदेश नहीं दिया था। 1971 में ही भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘इंडिया-सोवियत ट्रीटी ऑफ़ पीस, फ़्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन’ पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत सोवियत यूनियन ने भारत को आश्वस्त किया कि युद्ध की स्थिति में वो राजनयिक और हथियार दोनों से समर्थन देगा। इस युद्ध के बाद ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना था, यानि पाकिस्तान को भारत दो टुकड़ों में बांटने में कामयाब रहा था।

पाकिस्तान पश्चिम का सहयोगी था, तब भी भारत के ख़िलाफ़ हर युद्ध में उसे हार मिली। पाकिस्तान को भारत के ख़िलाफ़ ना केवल पश्चिम का समर्थन हासिल था, बल्कि खाड़ी के इस्लामी देश भी उसके साथ थे। शीत युद्ध के क़रीब नौ साल बाद 1999 में पाकिस्तान ने एक बार फिर करगिल में हमला क़दम पीछे खींचने पड़े थे। इन तीन युद्धों के बाद से दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है। सोवियत संघ कई हिस्सों में बंटा और अब रूस बचा है,.लेकिन दुनिया दो ध्रुवीय से एक ध्रुवीय हुई और अब चीन दूसरे ध्रुव की मज़बूत दावेदारी कर रहा है।

दूसरी तरफ़ भारत भी दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। बदलती दुनिया में भारत का भी अपना एक स्थान है, लेकिन पाकिस्तान अब भी आर्थिक मोर्चों पर सऊदी अरब, चीन और वैश्विक संस्थाओं पर निर्भर है।

अमेरिका को अब अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की भी पहले जैसी ज़रूरत नहीं है। अब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, अमेरिका और चीन से भारत का द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर के पार है। जबकि खाड़ी के अहम देश यूएई से भी भारत का द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर पार हो चुका है। वहीं सऊदी अरब से भी भारत का सालाना द्विपक्षीय व्यापार क़रीब 50 अरब डॉलर पहुंच चुका है। यूक्रेन और रूस की जंग के बाद रूस से भी भारत का द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 65 अरब डॉलर पार कर चुका है। भारत के तीन सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर और सऊदी अरब या तो पाकिस्तान के दोस्त हैं या दोस्त थे। कोई भी देश नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान के लिए भारत जैसे बड़े बाज़ार की उपेक्षा की जाए। जब सऊदी अरब ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने पर भारत का विरोध नहीं किया तो पाकिस्तान के विश्लेषकों का यही कहना था कि भारत के साथ उसके कारोबारी हित जुड़े हैं। यहां तक कि हिन्दुत्व की छवि वाले पीएम मोदी को सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बड़े भाई कहते हैं।

शीत युद्ध के बाद बदली दुनिया में भारत की प्रासंगिकता बढ़ी है। जबकि पाकिस्तान अपनी पुरानी अहमियत बचाने में भी नाकाम रहा है। ट्रंप इसी साल जनवरी में दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो लेन-देन के संबंधों को और बढ़ावा मिला. भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और बढ़ते तनाव को देखते हुए वैश्विक स्तर पर दोनों देशों से शांति वार्ता की अपील की जा रही है। दुनिया भर के देशों की इन अपीलों से एक समझ बन रही है कि किसकी सहानुभूति पाकिस्तान के साथ है और किसकी भारत के साथ, जबकि कौन पूरी तरह से तटस्थ है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने  कहा, ‘भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव को लेकर हम चिंतित हैं, ये तनाव युद्ध में बदल सकता है। मिसाइल हमलों में आम नागरिकों की जान जा रही है। दूसरी तरफ़ सऊदी अरब के विदेश राज्य मंत्री अदेल अल-जुबैर गुरुवार को अचानक भारत पहुंचे थे, उनका यह अघोषित दौरा था। हालांकि इसके बाद अदेल पाकिस्तान जाएंगे। ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराग़ची भी भारत आए थे, इससे पहले वह पाकिस्तान गए थे।

वहीं, सऊदी अरब ने 30 अप्रैल को एक बयान जारी कर दोनों देशों से शांति की अपील की थी और सभी विवादों को बातचीत से सुलझाने का सुझाव दिया था। ऐसे में सऊदी तटस्थ-भूमिका में है। पाकिस्तान को लेकर पश्चिम का रुख़ भी बदल गया है। भारत पश्चिम के क़रीब हुआ है और पाकिस्तान को लेकर अविश्वास बढ़ा है। ऐसे में पाकिस्तान और सऊदी अरब संबंध भी प्रभावित हुए हैं। पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में बढ़े तनाव को कम करने के लिए ईरान मध्यस्थता की कोशिश कर रहा है। उधर, फ्रांस ने भी कहा है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में वह भारत के साथ है। चीन ने पाकिस्तान के भीतर भारत की सैन्य कार्रवाई को लेकर खेद जताया था, लेकिन आतंकवाद की भी निंदा की थी। रूस ने भी कहा है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में वह भारत के साथ है। अमेरिका ने भी खुलकर आतंकवाद की निंदा की है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भारत की सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया है।

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