एमपी संजीव अरोड़ा बने आप की नई पहचान !

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आशु समेत कई राजनेताओं ने भी अपने अलग बरताव से बनाई थी इमेज

 लुधियाना, 3 जून। फिलहाल लुधियाना वैस्ट विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उप चुनाव के चलते तमाम तरह की चर्चाएं जारी हैं। मसलन, इस उप चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा की तुलना तो एक मामले में लोग पीएम नरेंद्र मोदी से भी कर रहे हैं। उनकी मानें तो बीजेपी की पहचान मोदी के नाम से बन चुकी है। इसी तरह राज्यसभा सांसद बनने के बाद से अरोड़ा ने लगातार अपनी इमेज निखारी है। नतीजतन, आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल, सीएम भगवंत मान और पार्टी के प्रदेश प्रधान अमन अरोड़ा समेत तमाम सीनियर नेता उनको ‘विकास-पुरुष’ की उपाधि दे चुके हैं।

दरअसल, उद्योग-जगत में अपने मिलनसार मिजाज और पॉजेटिव सोच के चलते अरोड़ा पहले से ही खास पहचान रखते थे। राज्यसभा सांसद बनकर राजनीति में उतरने के बावजूद उनकी यही सोच कायम रही। डेवलपमेंट पर फोकस करते हुए उन्होंने कभी विरोधियों के आरोपों पर खुलकर पलटवार नहीं किया। उल्टे विरोधियों का ‘मेरे दोस्त’ जैसे संबोधन के साथ उल्लेख करते हुए उनकी कमियां गिनवाने की बजाए सिर्फ विकास से जुड़े अपने कामों का ही हवाला दिया। इस उप चुनाव में भले ही राज्य की आप सरकार से जनता को कोई गिले-शिकवे हों, लेकिन ज्यादातर लोग निजी तौर पर अरोड़ा से नाखुश नहीं हैं।

आशु ने कांग्रेस में नई परंपरा से बनाई थी खास जगह :

जमीनी स्तर से राजनीति की शुरुआत करने वाले सूबे के पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु ने एक अलग ही परंपरा शुरु की थी। कौंसलर रहे आशु ने तेजी से अपना सियासी कद बढ़ाते हुए कांग्रेस में अलग पहचान बनाई थी। कांग्रेस राज में दो बार मंत्री रहे इस तेजतर्रार नेता के समर्थकों ने अलग ही नारा बुलंद किया। उनके समर्थकों की पहचान कांग्रेसी वर्कर की बजाए टीम-आशु के तौर पर बनी। जिसे लेकर तब ही सियासी-जानकारों का कहना था कि आशु लुधियाना और पंजाब में कांग्रेस की पहचान या कहें ‘ब्रांड-अंबेस्डर’ बन चुके हैं। यह बात दीगर है कि आप में रास सांसद अरोड़ा की अलग पहचान अपनी सकारात्मक सोच, नरम मिजाज और विकास कामों को लेकर बनी। जबकि कांग्रेस में आशु अपने तीखे व बागी तेवरों के चलते पार्टी के बाकी सीनियर नेताओं से आगे बढ़कर चर्चित नेता बतौर पहचान बनाने में कामयाब हुए। सियासी-जानकार मानते हैं कि आशु की खास-अलग पहचान की वजह से उनको इस उप चुनाव में भी पार्टी ने उनको ही उम्मीदवार बनाया।

 

भाजपा में बिक्रम सिद्धू ने बनाया था सियासी-कद :

जिले में भाजपा एक अर्से से कोई ऐसा करिश्माई-नेता नहीं उभर सका था, जिसने चुनाव के जरिए अपनी खास पहचान बनाई हो। हालांकि भाजपा में शामिल होकर सीनियर एडवोकेट बिक्रम सिंह सिद्धू ने तेजी से जनता में पकड़ बनाई। जिसका नतीजा पिछले विधानसभा चुनाव में देखने को मिला, सिद्धू बतौर भाजपा प्रत्याशी इस चुनाव में भले ही तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन पार्टी का वोट-प्रतिशत पहले की तुलना में बढ़ने पर वह चर्चा में रहे। यह बात अलग है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते भाजपा में प्रत्याशियों का सीधे राष्ट्रीय नेतृत्व करता है, लिहाजा इस उप चुनाव में सशक्त दावेदार होने के बावजूद सिद्धू को प्रत्याशी नहीं बनाया गया। हालांकि हाईकमान के इस फैसले से सिद्धू समर्थक ही नहीं, सियासी जानकार भी हैरान हैं।

शिअद में घुम्मन उभरे थे ‘ग्रेसफुल-पॉल्टिशियन’ बतौर :

शिरोमणि अकाली दल-बादल में सीनियर एडवोकेट परउपकार सिंह घुम्मन ने एक ‘ग्रेसफुल-पॉल्टिशियन’ के तौर तेजी से अलग पहचान बनाई थी। एडिश्नल एडवोकेट जनरल रहे घुम्मन इस उप चुनाव में शिअद से उम्मीदवार हैं। सियासी जानकारों की मानें तो भले ही मौजूद वक्त अकाली दल की पंजाब के साथ ही जिले में भी राजनीतिक-स्थिति कमजोर है, लेकिन घुम्मन की अपनी अलग फैन-फॉलोइंग है। अपने नरम मिजाज के साथ ही वह नैतिक-तौर पर कभी ‘दोस्त’ रहे चर्चित नेता व सियासी-दुश्मन पर खुला हमला नहीं करते हैं। मौजूदा हालात में यही माना जा रहा है कि अपने बलबूते घुम्मन चुनावी-दंगल में दमदारी से ताल ठोक रहे हैं।

बैंस और कंड़वल उभरे थे ‘जोड़ी’ बनाकर :

राजनीतिक-इतिहास पर नजर डालें तो पंजाब समेत देशभर में कई जोड़ीदार नेताओं ने अलग पहचान बनाई थी। लुधियाना में ही कभी कांग्रेस में सांसद जोगिंदर पाल पांडे और सतपाल मित्तल की जोड़ी खूब चर्चित थी। इसी शहर में कौंसलर बने जिगरी दोस्तों सिमरजीत सिंह बैंस और कंवलजीत सिंह कंड़वल भी चर्चित जोड़ीदार के तौर पर अकाली दल में तेजी से उभरे थे। फिर बैंस लोक इंसाफ पार्टी बना विधायक बने। हालाता बदले तो बैंस और कंड़वल की सियासी-राहें जुदा हुईं और दोनों अलग पार्टियों में रहने के बाद संयोग से फिर कांग्रेस में एक साथ हैं। सियासी जानकारों की मानें तो दोनों को ही कांग्रेस ने उनके सियासी-वजूद को देखते हुए पार्टी में तवज्जो दी। यह बात दीगर है कि बैंस अपने बाद कांग्रेस में कंड़वल की घर-वापसी से नाखुश हैं। दरअसल जिस आत्मनगर सीट से पहले बैंस विधायक रहे थे, पिछले विस चुनाव में यहीं से कंड़वल कांग्रेसी उम्मीदवार बनकर उनके मुकाबले लड़े थे। तब से दोनों में सियासी-रंजिश गहरी हो गई थी।

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