औरैया के डीमए इंद्रमणि त्रिपाठी राजकीय कार्यों के साथ बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं
सराहनीय पहल डीएम की पाठशाला
जनहितैषी, 25 मई, औरैया ।आमतौर पर जिलाधिकारी यानी डीएम को लोग कुर्सी पर बैठकर आदेश देते हुए देखते हैं, लेकिन औरैया के डीएम डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी इन दिनों एक अलग ही भूमिका में नजर आ रहे हैं। वह अपने सरकारी आवास को एक पाठशाला में तब्दील कर चुके हैं, जहां वे खुद गरीब, वंचित और असहाय बच्चों को पढ़ाते हैं। यह “डीएम साहब की पाठशाला” न सिर्फ एक शिक्षा केंद्र बन गई है, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनती जा रही है।
वी ओ वन — यह पाठशाला विशेष रूप से नाथ समुदाय (सपेरा समाज), बंजारा समाज और पड़ोसी गांवों के बच्चों के लिए संचालित की जा रही है। इन बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए डीएम त्रिपाठी ने एक पहल की है जो सरकारी कार्यशैली से बिल्कुल अलग और मानवीय दृष्टिकोण लिए हुए है। कोचिंग क्लास न सिर्फ मुफ्त है, बल्कि बच्चों को स्कूली यूनिफॉर्म, जूते, कॉपी-किताब और बैग जैसी जरूरी सुविधाएं भी प्रदान की जा रही हैं।
डीएम इंद्रमणि त्रिपाठी की यह पहल तब और अधिक सराहनीय बन जाती है जब यह देखा जाए कि ये बच्चे समाज के उस तबके से आते हैं जिन्हें अक्सर शिक्षा के उचित संसाधन तक पहुंच नहीं मिल पाती। डीएम साहब खुद समय निकालकर बच्चों को पढ़ाते हैं, उनकी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब डीएम औरैया चर्चा में आए हों। इससे पहले वे एक बुजुर्ग मृदा मजदूर को शिकायत सुनने के बाद अपनी सरकारी गाड़ी से उसके घर भिजवाने को लेकर चर्चित हुए थे। वहीं, उन्होंने एक फरियादी के घर में चूल्हे पर बना सादा भोजन भी बड़े स्नेह से खाया था। रक्षाबंधन पर बिन भाई की बहन से राखी बंधवाकर उन्होंने सामाजिक रिश्तों को भी विशेष मान दिया था।
लेकिन इस बार चर्चा का विषय उनकी कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि उनके शिक्षक बनने की भावना है। वे कहते हैं — “हर बच्चा पढ़े, आगे बढ़े, यह सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी साझी जिम्मेदारी है।”
डीएम त्रिपाठी की पाठशाला न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बन रही है, बल्कि यह समाज को यह भी सिखा रही है कि संवेदना और सेवा की भावना जब किसी प्रशासनिक पद से जुड़ती है तो बदलाव की बयार खुद-ब-खुद बहने लगती है।
यह प्रयोग अगर और जिलों में अपनाया जाए, तो शायद देश के लाखों गरीब और वंचित बच्चे एक नई रौशनी की ओर बढ़ सकें। डीएम औरैया का यह कदम निश्चित ही प्रशासनिक कार्यशैली को मानवीय बनाने की दिशा में एक उज्ज्वल उदाहरण है