यूपी के किसानों को मिल रहा है अनुदान पर ढैंचा बीज

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मृदा का स्वास्थ्य और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने पर है फोकस

प्रदेश के सभी जिलों के राजकीय कृषि बीज भण्डार पर अब तक कराई जा चुकी है 11656 कुन्तल बीज की आपूर्ति

जनहितैषी, 30 मई, लखनउ। प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि मृदा में जीवांश कार्बन एवं जैविक पदार्थ की वृद्धि तथा मृदा की उर्वरता बढ़ाने हेतु कृषि विभाग द्वारा 50 प्रतिशत अनुदान पर वर्ष 2025-26 सामान्य वितरण एवं प्रदर्शन कार्यक्रम अन्तर्गत ढैंचा बीज के वितरण करने की कार्य-योजना बनाई गई है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रदेश के समस्त जिलों के राजकीय कृषि बीज भण्डार पर अब तक 11656 कुन्तल बीज की आपूर्ति कराई जा चुकी है।

उन्होंने बताया कि मृदा में घटते कार्बनिक पदार्थ की मात्रा, कम वर्षा के कारण मृदा में बढ़ती लवणता/क्षारीयता, भूमि में घटती जीवांश तत्वों की मात्रा की प्रतिपूर्ति हेतु ढैंचा की हरी खाद के रूप में प्रयोग इन समस्याओं को दूर करने हेतु रामबाण के रूप में कारगर है। जिप्सम द्वारा ऊसर सुधार के बाद पहली एवं दूसरी फसल के रूप में धान एवं गेहूं की खेती करते हैं। जायद में तीसरी फसल के रूप में यदि इन खेतों में हरी खाद के लिए ढैंचा की बुवाई कर ली जाय तो ऊसर सुधार में स्थायी सफलता मिलती है। ढैंचा की फसल से गर्मियों में भूमि आच्छादित रहती है, जिससे ऊसर भूमि में नमक सतह पर नही आ पाता और भूमि सुधार में मदद मिलती है। ढैंचा की जड़ों के गाठों में पाया जाने वाला राइजोबियम बैक्टीरिया वायुमण्डल से भूमि में 70-80 किग्रा0 नाइट्रोजन/हे0 स्थिर करता है। ढैंचा के सड़ने के बाद भूमि में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है।

शाही ने कहा कि सामान्य खेत के लिए 40 किग्रा/हे0 बीज की आवश्यकता होती हैै, जबकि सुधारे गये ऊसर क्षेत्र में बीज की मात्रा 60 किग्रा0/हे0 कर लेनी चाहिए, क्योंकि ऊसरीली भूमि में जमाव प्रभावित होता है। अच्छे अंकुरण के लिए बीज को रातभर पानी में भिगोकर प्रातःकाल अतिरिक्त पानी निकालकर बोना चाहिए।
उन्होंने किसानों से अपील की कि हरी खाद के लिए ढैंचा की बुवाई के उपरान्त 40-45 दिन बाद खड़ी फसल को मिट्टी पलट हल से पलटाई कर देनी चाहिए। बुवाई के बाद ढ़ैचा की पलटाई गहरी पैन वाली मिट्टी पलट हल से पलटाई करनी चाहिए, क्योंकि ढैंचा की जड़े काफी गहरी होती हैं, इससे मिट्टी की उपरी सख्त परत टूट भी जाती है एवं भूमि में सुधार के साथ-साथ जीवांश में वृद्धि होती है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश के कृषि विभाग की योजनाओं अन्तर्गत विभागीय पोर्टल पर पंजीकृत समस्त श्रेणी के लाभार्थी कृषक 50 प्रतिशत अनुदान पर 40 किग्रा0/हेक्टेयर की दर से अधिकतम 02 हेक्टेयर सीमा तक बीज राजकीय बीज गोदाम से बीज प्राप्त कर अपने खेतों में समय से बुवाई करके खड़ी ढ़ैंचा की फसल को मृदा में मिलाने से कार्बनिक जीवांश की मात्रा की प्रतिपूर्ति के साथ ही मृदा की उर्वराशक्ति में वृद्धि हो सकती है जिससे मृदा की फसल उत्पादकता क्षमता में अवश्य ही वृद्धि होगी।

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